Monday, May 20, 2024
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मां शैल पुत्री की आराधना के साथ रविवार से शुरू हो रहा है शारदीय नवरात्रि

Ayodhya Samachar


◆ सज चुके हैं मंदिर व पंडाल


@ सुभाष गुप्ता


बसखारी अंबेडकर नगर। या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री माता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः। इस मंत्र के द्वारा नवरात्रि के प्रथम दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री माता की स्तुति के साथ रविवार को शुरू हो रहे शक्ति महोत्सव पर्व को मनाने की तैयारी शुरू हो गई हैं। जिला मुख्यालय सहित जिले के अन्य छोटी बड़ी बाजारों में एक दिन पूर्व चहल पहल बढ़ गई थी। नवरात्री में प्रयोग होने वाले सामानों की खरीददारी लोगों द्वारा की जा रही थी। नवरात्रि के प्रथम दिन खुलने वाले पूजा पंडालों को कारीगरों एवं पूजा समिति के कार्यकर्ताओं के द्वारा अंतिम रूप देने कार्य अंतिम चरण में है। अश्विनी मास की नवरात्रि के साथ विजयदशमी (दशहरा) पर्व मनाए जाने की परंपरा से शारादीय नवरात्रि की महत्ता बढ़ जाती है। वैसे तो साल में चार नवरात्रि की विधि शास्त्रों में वर्णित है। माघ, आषाढ़, चैत्र व शारादीय नवरात्रि। माघ और आषाढ़ की नवरात्रि गुप्त होती है। जबकि चैत्र व शारदीय  नवरात्रि में  मां की चौकी व कलश की स्थापना कर पूरे वैदिक विधि विधान के साथ शक्ति स्वरूपा जगत जननी के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। चैत्र नवरात्रि में जहां वैदिक विधि विधान के साथ व्रत धारण कर भक्त अपने घरों में माता की चौकी व कलश स्थापना कर पूरे विधि विधान के साथ 9 दिनों तक पूजा आराधना करते हैं ।वहीं शरादीय नवरात्रि में घरों में  माता की चौकी व कलश  की स्थापना के साथ गांव व नगर में मनमोहक विद्युत सजावट के साथ मां दुर्गा के भव्य पंडालों को सजाकर मां दुर्गा की आराधना की जाती है। पिछले साल शरादीय नवरात्रि 26 सितंबर से शुरू हो गया था। लेकिन  इस साल पुरुषोत्तम मास के कारण शरादीय नवरात्रि 15 अक्टूबर रविवार को शुरू हो रहा है। नवरात्रि संस्कृत शब्द है। जिसका का अर्थ  9 रातें है। नवरात्रि और 10 दिनों के दौरान शक्ति स्वरूपा माता नव दुर्गा के 9 अलग-अलग रूपों की पूजा करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है।  नवरात्रि के प्रथम दिन मां के प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा आराधना करने का विधान बताया गया है। हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनका नामकरण शैलपुत्री के रूप में हुआ है। सच्चे मन से माता के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री देवी की आराधना करने से आरोग्य, सौभाग्य सुख ,शांति के साथ  सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने का फल भक्तों को मिलता है। माता अपने इस स्वरूप में एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में कमल का फूल लिए वृषभ ( बैल )पर विराजमान है। मां के इस रूप की पूजा आराधना करने से व्यक्ति को शक्तिशाली एवं बलशाली का होने का सौभाग्य प्राप्त होता है।

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