अयोध्या। डा आलोक मनदर्शन ने बताया कि किशोर व युवा सुसाइड के हाई रिस्क ग्रुप में हैं। मनोस्वास्थ्य जागरूकता का अभाव, परिस्थितियों से अनुकूलन की क्षमता में कमी तथा दुनिया को केवल काले और सफेद में देखने की मनोवृत्ति इसके लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। अवसाद तथा अन्य मनोरोग या व्यक्तित्व विकार से ग्रसित युवाओं में आत्मघात की प्रबल सम्भावना होती है। रही-सही कसर अभिभावकों की फाल्टी पैरेटिंग, अति अपेक्षावादी माहौल,अकादमिक व कैरियर द्वंद , पीयर प्रेशर व तुलनात्मक आंकलन पूरी कर देता है। सोशल मीडिया,ऑनलाइन गेमिंग व गैंबलिंग की मादक लत भी किशोरों व युवाओं में बिना सोचे समझे नकारात्मक कदम ले लेने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे हैं। यह बातें जिला चिकित्सालय के किशोर व युवा मनोपरामर्श क्लीनिक के मनोपरामर्शदाता डॉ आलोक मनदर्शन ने विश्व आत्महत्या रोधी दिवस 10 सितम्बर पूर्व संध्या “किशोर व युवा आत्मघाती मनोवृत्ति“ विषयक विशेष जागरूकता विज्ञप्ति में दी ।
उन्होने बताया कि आत्महत्या के विचार पहले पैसिव रूप में आते है जिसमे किसी दुर्घटना या बीमारी आदि से जीवन स्वतः समाप्त हो जाने के विचार आतें है पर कुछ समय पश्चात ये एक्टिव रूप में आकर आत्मघाती कृत्य करने को बाध्य कर देते हैं। समय रहते मनोपरामर्श से इन विचारों से निकला जा सकता है। साथ ही परिवार का सकारात्मक भावनात्मक सहयोग का भी बहुत योगदान होता है। आत्महत्या के विचार से ग्रसित व्यक्ति के परिजनों को भावनात्मक लगाव का मनोउपयोग आत्महत्या के विचार को उदासीन करने में तथा मनोविशेषज्ञ के बताये सलाह के अनुपालन में किया जाना चाहिये । इस मनोतकनीक को इमोशनल हुकिंग कहा जाता है,जिससे आत्मघाती कृत्य पर उतारू व्यक्ति की डेथ इंस्टिंक्ट या मृत्वेषणा को उदासीन तथा लाइफ इंस्टिंक्ट या जीवेषणा का सम्यक सवंर्धन किया जा सकता है । “किसी की जीवन आशा बनो“ इस वर्ष का आत्महत्या रोधी स्लोगन है।