◆ प्रेस क्लब अयोध्या में दैनिक जनमोर्चा का आयोजित हुआ स्थापना दिवस


अयोध्या, 5 दिसम्बर। प्रेस क्लब अयोध्या में दैनिक जनमोर्चा के 65 वें स्थापना दिवस समारोह में पत्रकारिता की स्थिति एवं संभावनाएं विषयक संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि नवभारत टाइम्स लखनऊ के संपादक मो. नदीम ने कहा कि सत्ता जनित दबाव कोई नया नहीं है। सरकारों का दबाव मीडिया तक ही सीमित नहीं है, यह संकट दूसरी सभी संस्थाओं में है। वर्तमान के पीछे हम अतीत के पन्नों में नहीं जाते और कहते हैं कि मीडिया पर दबाव अब कुछ ज्यादा बढ़ गया है। यह ठीक वैसा ही है, जब हम कहते हैं कि इस वर्ष वर्षा, गर्मी या जाड़ा बहुत अधिक हुआ। मीडिया पर सरकारों का दबाव हमेशा से रहा है। हममें से बहुतों ने 70 का दशक भी देखा होगा, जब अखबारों का पेजेज पीएमओ तय करता था। सरकार का दबाव उस समय भी था, जब हल्ला बोल हुआ था। अतीत में जाकर देखें तो पता चलता है कि तमाम सरकारों के मुख्यमंत्रियों ने खिलाफ में लिखने वाले पत्रकारों व अखबारों का क्या हस्र किया था? 90 के दशक में सत्ता का अपना मिजाज था। आया राम-गया राम की परम्परा 1977 में शुरू हुई थी। जहाँ तक क्षरण का सवाल है तो यह केवल पत्रकारिता व पत्रकारों में ही नहीं, आया बल्कि दूसरी संस्थाओं में भी है।

उन्होने कहा कि आज जो स्थितियाँ पैदा हुई हैं, उसके जिम्मेदार हम पत्रकार हैं। गिरावट व विश्वास का यह संकट आज का नहीं है। यह बहुत पहले से चला आ रहा है। यदि आप इसे नया कह रहे हैं तो इसका अर्थ है कि आप सच से मुँह मोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि अखबार चलाने और कर्मियों को वेतन देने के लिए विज्ञापन की जरूरत होती हैं। विज्ञापन पाने के लिए अखबारों को सरकार व संस्थाओं की ओर देखना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में अखबारों व पत्रकारों को अपने में तमाम बदलाव करने होंगे।

मुख्य अतिथि महानिदेशक भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली प्रोफेसर संजय द्विवेदी ने कहा कि बदलते दौर में प्रिंट मीडिया में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ेगा, तभी वह अपना वजूद बचा पायेगी। समाचार पत्रों को समय के साथ ही अपने को प्रासंगिक बनाए रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता एक टूल है, इसलिए पत्रकारिता में टूल का कोई दोष नहीं है। राजनीतिक पत्रकारिता बहुत गलत है, यह कहना तथ्यात्मक सही नहीं है। उन्होंने कहा कि 1990 के बाद पत्रकारिता में काफी बदलाव हुआ है। अब समाचार पत्रों में हर क्षेत्र की खबरें प्रकाशित हो रही हैं। वे राजनीतिक दबाव में नहीं हैं। आज राजनीति के बारे में न्यूनतम समाचार होते हैं। सभी समाचार पत्रों में ग्रामीणों, महिलाओं, विकासपरक और कॅरियर बेस समाचारों की अधिकता रहती है, ऐसे अखबार आगे बढ़े हैं। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि अब समाचार पत्र नितांत स्थानीय हो गए हैं। प्रिंट मीडिया पूरीतरह नगर केंद्रित हैं। वे कई-कई संस्करण निकाल रहे हैं। लोगों को अब समाचार और सूचनाएं अन्य माध्यमों से मिल जा रही हैं। सोशल मीडिया वाले खबर नहीं सूचनाएं दे रहे हैं। पत्रकार वह है, जो खबर देता है। झोला छाप डाक्टर, डिग्रीधारक डाक्टर, मुखबिर-सिपाही, पत्रकार-गैरपत्रकार व खबर और सूचना में हमें अन्तर करना ही होगा।

वरिष्ठ पत्रकार एवं न्यूज एक्सप्रेस भोपाल के संपादक बल्देवराज गुप्त ने कहा कि पत्रकारिता में आज जिस तरह से बदलाव हो रहा है, वजूद बचाये रखने के लिए संघर्ष करने होंगे, ।इसके लिए सबके सहयोग की जरूरत है। श्री गुप्त ने अतीत में लौटते हुए कहा कि करीब पचास साल पहले हिन्दुस्तान का कोई भी अखबार आज जैसी दमदार हेडिंग नहीं लगा सकता था। इससे पहले पूर्व सांसद डा. निर्मल खत्री ने कहा कि संकट चारों ओर है। ऐसे में मंचस्थ वरिष्ठ पत्रकार इस संकट से उबरने का कोई समाधान बताएं यही गोष्ठी की सार्थकता होगी। फैजाबाद की आवाज के संपादक सुरेश पाठक का कहना था कि गांव-गरीब, कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य के समाचार अखबारों से गायब हो गये है। यह स्थिति अच्छी नहीं है। इस अवसर पर ईट व्यवसाई जगदीश सिंह, संजय सालवानी, जितेंद्र प्रताप सिंह, सुनील तिवारी, सुरेश काली, पियूष केलवानी, मौजूद रहे।