◆ नागों के आवाह्रन पर साक्षात़ प्रकट हुए थे शिव


◆ नागों के आवाह्रन पर साक्षात़ प्रकट हाने पर शिवालय का नाम नागेश्वर नाथ


◆ असंख्य शिवभक्तों की आस्था एवं श्रद्धा का केन्द्र


◆ नागेश्वशर नाथ की स्थापना स्वंय कुश ने की


@ Amit Mishra


अयोध्या की प्राण वायु समान सरयू की अविरल धारा के समीप मात्र 150 मी की दूरी पर स्थित भगवान शिव का यह शिवालय असंख्य शिवभक्तों की आस्था एवं श्रद्धा का केन्द्र है। भगवान शिव का यह शिवालय 108 ज्योर्तिलिंगो में एक है । मान्यता के अनुसार श्रावण मास में भगवान का अभिषेक करने से भक्त सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

मलमास , शिवरात्रि मे शिवालय में भगवान शिव के पूजन एवं अभिषेक से व्यक्ति की सभी कामनाऐं पूर्ण हो जाती है। शिवालय के स्थापना के विषय में बहुत से आख्यान व संर्दभ प्राप्त होते है। धार्मिक मान्ययताओं के अनुसार भगवान श्रीराम अनंत धाम जाने से पूर्व अयोध्या राज्य को आठ भागों में बांट दिया था। उन्हो नें भरत के पुत्र पुष्कल तथा मणिभद्र लक्ष्मण के पुत्र अंगद व सुबाहु और शत्रुघन के पुत्र नील तथा भद्रसेन और अपने पु्त्र लव तथा कुश को समान भागों में बांट दिया। जिसमें कुश को कौशाम्बी् का राज्ये मिला, एक रात कुश को स्वपप्न आया जिसमें अयोध्या नगरी उनसे कह रही थी कि भगवान श्रीराम के अनंत धाम जाने के बाद मेरी स्थित पूर्व की भांति नही रह गई । अयोध्याम की जिम्मेपदारी हनुमान जी को सौपी गई थी। परन्तु् वे अपने स्वायमी की गद्रदी पर बैठना अनुचित मानते है। इस कारण आप आकर अयोध्या पर शासन करें। इस स्वप्न के आधार पर कुश अयोध्या् आकर इसे अपनी राजधानी बना कर रहने लगे।

              शिव पुराण के एक आलेख के अनुसार एक बार नौका बिहार करते समय उनके हाथ का कंगन सलिला सरयू में गिर गया जो कंगन सरयू में वास करने वाले कुमुद नाग की पुत्री के पास गिरा। यह कंगन वापस लेने के लिए राजा कुश तथा नाग कुमुद के मध्य घोर संग्राम हुआ जब नाग को यह लगा कि वह यहां पराजित हो जायेगा तो उसने भगवान शिव का ध्यान किया भगवान स्वंय प्रकट होकर युद्व को रूकवाया कुमुद ने कंगन देने के साथ भगवान शिव से यह अनुरोध है कि उनकी पु्त्री कुमुदनी का विवाह कुश के साथ करवाया दें । कुश ने इसे स्वीकार किया तथा भगवान शिव से यह अनुरोध किया कि वे स्वंय यहां सर्वदा यही वास करें भगवान शिव ने उनकी इस याचना को स्वीकार कर लिया। नागों के ध्यान करने पर भगवान शिव प्रकट हुए थे जिसकारण इसे नागेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता है ।                            तत़पश्चात राजा कुश ने अयोध्याु में नागेश्वर नाथ मंदिर की स्थापना की। कुश के द्वारा मंदिर के मुख्य द्वार पर एक शिलालेख लगवाया गया था। जो नष्ट हो चुका है। नागेश्वेर नाथ की महिमा का बखान न केवल हिन्दू भक्तों ने अपितु अंग्रेजो ने भी इसकी विशेषता का बखान किया है।

                            अंग्रेजी विद्वान विंसेटस्मिथ ने लिखा कि 27 आक्रमणों को झेल कर भी यह मंदिर अपनी अखंण्डरता को बनाये रखे है। हैमिल्टान ने लिखा है कि पूरे विश्वन में इसके समान दूसरा दिव्यअ स्थानन कोई नही है। प्रख्यामत विद्वान मैक्सकमूलर ने लिखा है कि सैकडों तुफानों को झेल कर भी यह मदिर अपनी अडिगता से अपने आप को स्था पित किए हुए है। कनिघंम ने उल्लेख किया है कि प्राणी को सच्ची शांति का विश्व में एक मात्र स्थान यही है। इतिहास कार लोचन का कहना कि रामेश्वरम, सोमनाथ, काशी विश्वनाथ के समान ही अयोध्या के नागेश्वर नाथ का भी शिवआराधना में विशिष्ट स्थान है।