◆ सोमवार को करूणामयी कात्यायनी माता के बाद मंगलवार को शुरू हुई मां के विकराल स्वरुप कालरात्रि की पूजा


@ सुभाष गुप्ता


बसखारी अंबेडकर नगर, 12 अक्टूबर। सोमवार को भगवती मां दुर्गा के छठे स्वरूप करुणामई कात्यायन ऋषि की पुत्री के रूप में जन्म लेने वाली, सुनहरे और चमकदार बलिए चार भुजाओं के साथ सिंह पर सवार भक्तों का कल्याण करने वाली माता कात्यानी देवी की पूजा आराधना करने के बाद मंगलवार को भक्तों के द्वारा मां के सातवें स्वरूप माता कालरात्रि की पूजा पुरे विधि विधान के साथ शुरू की गई। माता के स्वरूप के बारे में इनके नाम से ही प्रतीत होता है कि इनका रूप बिकराल एवं भयानक अंधकार जैसे एकदम काला है। ब्रह्मांड जैसे तीन नेत्रों वाली कालरात्रि देवी अपने बिखरे बाल और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला लिए हुए अंधकारमय दुष्ट प्रवृत्तियों को नाश करने वाली है। कालरात्रि माता की सांसो में अग्नि प्रवाहित होने के साथ उनकी सवारी गंर्धभ (गघा)है। चतुर्थ भुजा धारी माता कालरात्रि अपने दो हाथों में लोहे का कांटा तथा खड्ग लिए दुष्टों का नाश करने की प्रतीक होने के साथ दो हाथ वर मुद्रा व अभय मुद्रा में रखते हुए भक्तों को निर्भय, निडर होने का वरदान देने वाले अपने सातवें स्वरूप में गर्दभ पर विराजमान हैं। नवदुर्गा का सातवां रूप असुरी एवं दुष्कर्मी स्वभाव रखने वाले राक्षसों के लिए ही भयंकर है। भक्तों के लिए माता ममतामई एवं शुभ सिद्धियों को प्रदान करने वाली है।कहा जाता है कि कालरात्रि मां की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं। और तमाम आसुरी शक्तियां उनके नाम के ही उच्चारण से भागने लगती है।मां कालरात्रि के इस रूप धारण करने के पीछे शास्त्रों में कथा वर्णित है कि माता ने यह रूप चंड मुंड एवं उसकी चतुरंगिणी सेना के बध के लिए उस समय धारण किया था।जब दैत्यराज शुंभ की आज्ञा पाकर चण्ड-मुण्ड चतुरंगिणी सेना लेकर मां को पकड़ने के लिए हिमालय पर्वत पर पहुंच गया। चण्ड-मुण्ड के इस दुस्साहस से नाराज होकर माता अत्यंत ही क्रोधित हो गई।जिससे उनका मुंह काला पड़ने के साथ उनके शरीर का मांस भी सूख गया। अत्यधिक कोध्र से ओतप्रोत विकराल मुख लिए माता भयंकर गर्जना के साथ चण्ड मुण्ड सहित उसकी सेना पर पर टूट पड़ती हैं।और उनका वध करते हुए उनके मुंडो की माला गले में लटका कर उन सब का भक्षण करने लगती है।मां के इस विकराल एवं संहारक रूप को देखकर देव, दानव एवं मानव सब चिंतित होने लगे। कहा जाता है कि देवाधिदेव महादेव के हस्तक्षेप के बाद देवी का क्रोध शांत हुआ। दुष्टों के संहारक व भक्तों के शुंभाकर के रूप में प्रतिष्ठित कालरात्रि माता को शुभंकरी की भी संज्ञा दी गई है।

चामुण्डे,मुण्डमथने, नारायणी नमोऽस्तु ते।या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

इस मंत्र के साथ मां की कृपा पाने के लिए भक्तों को गंगा जल, पंचामृत, पुष्पगंध ,अक्षत,गुड़, आदि से माता कालरात्रि की शुद्धता संयम ब्रह्मचर्य एवं सत्य मार्ग का अनुसरण करते हुए शास्त्रीय विधि से एवं सच्चे मन से साधना करने का शास्त्रों में विधान बताया गया है। यदि शास्त्रो में वर्णित विधि के अनुसार माता के सातवें रूप की आराधना की जाए तो तत्काल शुभ फल की प्राप्ति होने का फल मिलता है। साथ ही ग्रह दोष भी माता कालरात्रि की आराधना से दूर होते हैं। इनकी कृपा मात्र से ही व्यक्ति अनेक प्रकार के भय व भ्रम से दूर हो जाता है।