◆ स्कंदमाता वात्सल्य,पद्मासन, कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी पुज्जनीय


बसखारी अंबेडकर नगर, 10 अक्टूबर। या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः। नवरात्रि के दौरान अश्वनी मास की पंचमी तिथि को वात्सल की प्रतिमूर्ति मां स्कंदमाता की स्तुति एवं पूजा आराधना का विधान शास्त्रों में वर्णित है। इस नवरात्रि में पंचमी तिथि 10 अक्टूबर को होने के कारण भक्तों ने 10 अक्टूबर को मां स्कंदमाता की पूजा आराधना शुरू की। स्कंदमाता का यह स्वरूप स्कंद कुमार कार्तिकेय को बाल रूप में अपनी गोद में लिए मातृत्व प्रेम से परिपूर्ण है। वैसे तो मां नव दुर्गा के सभी नौ स्वरुप महत्वपूर्ण है। लेकिन शास्त्रों में मां नव दुर्गा के वात्सल से परिपूर्ण इस स्वरूप को महत्वपूर्ण बताया गया है। जो माता-पुत्र के प्रति प्रेम का संदेशवाहक है। इस स्वरूप में मां दुर्गा बाल रूप में स्कंद कुमार कार्तिकेय को हमेशा अपनी गोद में लिए रहती हैं। जिस प्रकार से मां अपने बच्चों की सभी प्रकार की गलतियों को माफ करते हुए उसे अभय,सुखमय जीवन देने के लिए संकल्पित रहती है। ठीक उसी प्रकार से नव दुर्गा के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की सच्चे मन से की गई उपासना से भक्तों की सारी गलतियां तो क्षमित होती ही हैं‌।साथ ही मनोकामना की पूर्ति का भी मां अपने भक्त रूपी पुत्रों को बर प्रदान करती है। चार भुजाओं के साथ शेर पर सवार स्कंदमाता बालस्वरूप अपने पुत्र स्कंद को दायी भुजा से पकड़े हुए एवं दाएं तरफ स्थित दूसरे भुजा में कमल पुष्प लिए एवं बाई तरफ स्थित तीसरी भुजा वर मुद्रा व चौथी भुजा में कमल पुष्प लिए सदैव भक्तों के कल्याण के लिए तत्पर रहती हैं। जिस कारण इन्हें कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है।कमल के आसन पर विराजमान होने के कारण माता के इस स्वरूप को पद्मासन की भी संज्ञा प्राप्त हुई है। स्कंदमाता की आराधना करने वाले मनुष्य को सुख शांति के साथ संपन्नता की प्राप्ति होती है। वात्सल की प्रतिमूर्ति, कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री, पद्मासन देवी मां दुर्गा के नव रूपो में स्कंद माता की सच्चे मन से की गई उपासना से व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण तो होती ही हैं। साथ ही उसे मृत्युलोक में परम शांति की अनुभूति होती है। और उसके लिए मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त हो जाता है।