◆ नौ देवी की साधना का पर्व नवरात्रि गुरुवार से शुरू


◆ प्रथम दिन मां के प्रथम रूप शैलपुत्री की भक्तों ने की आराधना


@ सुभाष गुप्ता


बसखारी, अंबेडकर नगर, 7 अक्टूबर। इस बार मातृशक्ति की प्रतीक महालक्ष्मी ,महासरस्वती एवं महाकाली की आराधना का पर्व शरादीय नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार से हुई। नवरात्रि के पहले दिन जगत जननी के भक्तों ने अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए मां के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा आराधना की। अक्सर नवरात्रि का पर्व 9 दिनों तक चलता है और दसवे दिन दशहरे के उत्सव के रूप में समाप्त होता है। लेकिन इस बार यह नवरात्रि का महापर्व 8 दिन तक ही रहेगा। जो 7 अक्टूबर से शुरू होकर और नवें दिन दशहरे के रूप में 15 अक्टूबर को समाप्त होगा। नवरात्रि के पावन पर्व के 9 रात्रि और 10 दिन के दौरान शक्ति स्वरूपा जगत जननी के नौ रूपों की पूजा करने का विधान है। लेकिन इस बार नवरात्रि के 8 दिन होने के चलते दशहरे का पर्व नौवें दिन मनाया जाएगा।नवरात्रि के प्रथम दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चन्द्रघंटा चौथे दिन कुष्मांडा,पांचवें दिन स्कंदमाता,छठवें दिन कात्यायनी माता, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी और 9 दिन सिद्धिदात्री माता की पूजा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है। नवरात्रि में देवी की पूजा अर्चना करने से काम ,क्रोध, मोह एवं लोभ पर नियंत्रण होता है।साथ ही मानव के अंतःकरण एवं अहंकार का शोधन कर अच्छे संस्कार का भी सृजन होता है। नवरात्र के दिनों में रखने वाले व्रत एवं पूजन से मनुष्य के तन, मन के रोग अहंकार, भय, बंधन, पाप, सुख-दुख एवं महामारी के स्वरूप में निवास करने वाले राक्षसों का अंत भी होता है। नवरात्रि का पर्व साधना का भी पर्व है जो व्यक्ति में व्याप्त पंच संस्कार को देवत्व के संस्कार में बदल देता है। जगत जननी मां दुर्गा को 9 इंद्रियों का केंद्र बिंदु माना जाता है। इनकी साधना से 9 इंद्रियों को संयमित करते हुए मन,शरीर और आत्मा को गतिशील बनाया जा सकता है। वैसे नवरात्रि पर्व के साल में पौष, चैत्र,आषाढ़, अश्वनी माह में सहित कुल 4 बार आने के बात बताई जाती है। लेकिन चैत्र एवं अश्वनी माह में पड़ने वाले नवरात्रि का विशेष महत्व है।इन दोनों महीनों में पड़ने वाले नवरात्रि में लोग कलश स्थापना एवं मां की चौकी स्थापित कर व्रत रहते हुए देवी स्वरूपा जगजननी मां दुर्गा की आराधना करते हैं। लेकिन अश्वनी माह में पड़ने वाले नवरात्रि में लोग अपने घरो में माता की चौकी एवं कलश स्थापना के साथ पूजा आराधना तो करते ही हैं। साथ ही गांव,बाजार, कस्बो एवं शहरों में भव्य पंडाल बना कर वर्षों से चली आ रही मां दुर्गा की पूजा आराधना की परंपरा का निर्वहन भी करते हैं। अश्वनी मास की प्रथम तिथि से शुरू होने वाले शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है। शारदीय नवरात्रि में नवरात्रि पर्व के उत्सव पूर्वक मनाए जाने की मनमोहक छटा भी देखने को मिलती है। इस नवरात्रि में जहां लोग अपने अपने घरों में कलश स्थापना कर 9 दिन तक देवी की स्तुति , जागरण एवं आराधना करते हैं। वही गांव, बाजार कस्बो एवं शहरों में लोग बिजली की सजावट, ध्वनि विस्तारक यंत्र के माध्यम से बजने वाले भक्तिमय गीतों और भव्य पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर उत्सवपुर्वक व्रत एवं आराधना कर इस पर्व को उल्लासपूर्वक मनाते हैं। नवरात्रि पर्व को मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। जिसमें जगत जननी मां दुर्गा के रूप में महिषासुर मर्दिनी का वध एवं लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी के द्वारा जगत जननी मां दुर्गा की 9 दिनों तक आराधना से जुड़ी कथा अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। जिसमें 108 कमल के द्वारा जगत जननी मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी द्वारा की गई 9 दिनों तक की गई देवी दुर्गा की पूजा आराधना में एक कमल के ना मिलने पर कमलनयन कहे जाने वाले अपने नेत्र को भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने मां दुर्गा को चढ़ाने का प्रयास किया था। जिस पर प्रसन्न होकर माता दुर्गा ने उन्हें लंका पर विजयश्री होने का आशीर्वाद दिया था। कहा जाता है कि तभी से विलक्षण एवं अद्भुत नौ दिवसीय इस महापर्व के मनाने की परंपरा शुरू हुई। गुरुवार से शुरू हुए नवरात्र के पहले दिन पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप शैलपुत्री की आराधना के साथ नवरात्र का पर्व शुरू हो चुका है। नवरात्रि के प्रथम दिन पुज्नीय माता शैलपुत्री का स्वरुप नंदी बैल पर सवार हाथ में त्रिशूल, कमल पुष्प लिए धर्म एवं भक्तों का कल्याण करने वाला है।