जिसको राजनैतिक विशेषज्ञ नुकसान बता रहे थे उसे भाजपा ने कैसे बदला
अयोध्या। महापौर चुनाव की जब शुरुवात हुई थी। तो इस बार कड़े संघर्ष की उम्मीद जताई जा रही थी। सबसे ज्यादा रामपथ, 41 गांव व रेलवे ओवर ब्रिज निर्माण में मुआवजा न मिलना भाजपा को बड़ा नुकसान राजनैतिक विशेषज्ञों के द्वारा तत्समय बताया जा रहा था। परन्तु भाजपा ने ऐसी चाल चली कि सपा मुआवजे से नाराज भाजपा के वोटों में सेंध तो नहीं लगा पायी बल्कि उसी के परम्परागत वोटरों में बंटवारा हो गया।
कहीं भी प्रचार में नहीं दिखी सपा -भाजपा जोरदार प्रचार कर रही थी। नामांकन सभा से लेकर उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने सम्मेलन व उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने पार्टी प्रत्याशी के समर्थन में रोड़ शो किया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दो बार अयोध्या आये। उन्होने जीआईसी में बड़ी जनसभा को भी सम्बोधित किया। वहीं समाजवादी पार्टी केवल जनसम्पर्क व नुक्कड़ सभाओं तक सीमित रही। पार्टी का कोई भी बड़ा नेता अयोध्या नहीं आया। नामांकन से लेकर अंतिम दिन तक सपा ने कोई जलूस नहीं निकाला। जिससे पार्टी के प्रति नकारात्मक संदेश गया
भाजपा यह साबित करने में सफल रही कि बुरी तरह से हार रही है सपा – भाजपा यह साबित करने में सफल रही कि समाजवादी पार्टी बुरी तरह से हार रही है इसका परिणाम यह रहा कि सपा के परम्परागत वोटर मुस्लिम का एक बड़ा तबका एआईएमआईएम पर चला गया। इसके साथ में भाजपा ने सपा के वोटरों में भी सेंध लगा ली। समाजवादी पार्टी कभी यह साबित नहीं कर सकी कि वह लड़ाई में है।
भाजपा का बूथ स्तर तक का संगठन ने रची जीत की पटकथा- भाजपा के जीत की पटकथा उसके बूथ स्तर के संगठन ने लिखी। बूथ प्रबन्धन व पन्ना प्रमुखों का योगदान भाजपा की जीत का सबसे बड़ा कारण रहा। सम्पर्क व संवाद की प्रक्रिया में भाजपा की कई टीमें लगी। वहीं समाजवादी पार्टी का बूथ प्रबन्धन काफी कमजोर रहा। महापौर चुनाव में सपा अपने पार्षद प्रत्याशियों का भी पूरी तरह से समर्थन नहीं हासिल कर सकी। पार्टी के पार्षद प्रत्याशी महापौर को छोड़कर खुद के जीत की रणनीति तैयार करते दिखाई दिये।
सपा सम्हाल नहीं पायी गुटबाजी- समाजवादी पार्टी ने डा आशीष पाण्डेय दीपू को अपना प्रत्याशी बनाया। आशीष पाण्डेय पूर्व विधायक जयशंकर पाण्डेय के बेटे है। पूर्व मंत्री तेजनारायन पाण्डेय के ममेरे भाई भी है। डा आशीष पाण्डेय दीपू के प्रत्याशी बनाये जाते ही सपा संगठन में गुटबाजी हावी हो गयी। पार्टी के एक धड़ा उनकी उम्मीदवारी से नाराज था। वहीं भाजपा में मेयर पद हेतु कई दावेदार थे। पार्टी ने जब महंत गिरीश पति त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाया तो यहां भी गुटबाजी की सम्भावना व्यक्त की जा रही थी। परन्तु भाजपा के कड़े तेवर के आगे किसी की नहीं चली। पूरी पार्टी प्रत्याशी को लेकर एकजुट नजर आयी।