अंबेडकरनगर । यूं तो ज़िंदगी गुज़र जाती है हर किसी की जैसे–तैसे । मगर इंसानियत का किरदार निभाते गुज़र जाए तो अच्छा है ।। चर्चित कवि व मंच संचालक डॉ० तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु का यह शेर इंसानियत के नाम है । यूं तो भौतिकवादी दुनिया में प्रगतिवाद एवं प्रयोगवाद का बोलबाला है । स्वार्थवाद चरम पर है । आदमी आदमी से दूर हो रहा है । आपसी प्रेम विश्वास सौहार्द एवं भाईचारे की ख़बर दूर-दूर तक नहीं मिलती । ऐसे परिवेश में अगर इंसानियत का पैग़ाम दुनिया को देना है तो कविता एवं साहित्य की महफ़िलों का आयोजन ज़रूरी है । शैक्षिक क्रांति के दौर में हम बड़ी-बड़ी डिग्रियां ले रहे हैं मगर नैतिकता एवं भाईचारे से दूर हो रहे हैं । यह स्वस्थ समाज के लिए चुनौती है । ऐसे झंझावात एवं चुनौती भरे माहौल में डॉ० तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु की कविताएं समाज को जगाने का काम कर रही हैं । जिज्ञासु की साहित्यिक शौक का नतीजा है कि आज हिंदुस्तान के अदबी कार्यक्रमों में जिज्ञासु का नाम बड़ी इज़्ज़त से लिया जाता है । अब तक जिज्ञासु को उनके सामाजिक , शैक्षिक एवं साहित्यिक योगदान को लेकर कई प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है । जिज्ञासु के कई व्यक्तिगत एवं साझा काव्य संग्रह प्रकाशित हैं । हिंदुस्तान की प्रतिष्ठित रजिस्टर्ड साहित्यिक संस्था हमारा प्यारा हिंदुस्तान के संस्थापक निर्दोष जैन लक्ष्य द्वारा द्वारा डॉ० तारकेश्वर मिश्र जिज्ञासु को परशुराम जयंती के पावन अवसर पर ब्राह्मण रत्न की उपाधि से अलंकृत किया गया है । जिज्ञासु के सम्मान प्राप्ति पर सोशल मीडिया के माध्यम से शिक्षकों , कवियों , साहित्यकारों एवं समाजसेवियों द्वारा बधाई एवं शुभकामनाओं का सिलसिला जारी है ।