Saturday, September 21, 2024
HomeAyodhya/Ambedkar Nagarअयोध्याश्रीकृष्ण हैं मनोपरामर्श के इष्ट तथा गीता सूक्ति है मनोउपचार युक्ति

श्रीकृष्ण हैं मनोपरामर्श के इष्ट तथा गीता सूक्ति है मनोउपचार युक्ति


अयोध्या। श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व के जन मनोस्वास्थ्य को लेकर डा आलोक मनदर्शन ने बताया कि मनोमहामारी से जूझ रहे आधुनिक समाज में गीता की सूक्तियों को भावनात्मक रूप से आत्मसात कर व्यग्र व रुग्ण मनोदशा का परिमार्जन किया जा सकता है।

मन की आसक्तियों व विकृतियों का निदानात्मक विश्लेषण व मनोउपचार  की सबसे प्रभावी आधुनिक विधा संज्ञान व्यवहार उपचार या कॉग्निटिव बिहैवियर थिरैपी – सी बी टी  का आदि संदर्भ महाग्रंथ गीता मे उद्धरित है। व्यवहारिक जीवन के संघर्षो व परिस्थियों से उत्पन्न होने वाली मनोदशाओ का वर्णन व समाधान इस महाग्रंथ में समाहित है।

संज्ञान व्यवहार मनोउपचार में सर्वप्रथम उन विचारों व भावनाओं का निरपेक्ष व सचेतन पहचान कराया जाता है, जो अर्धचेतन मन पे हावी होकर लोभ, मोह, क्रोध, ईर्ष्या जैसी वृत्ति बनकर अवसाद, उन्माद, शक वहम, डर, भय जैसे मनोविकार का रूप ले सकते हैं । ठीक यही युक्ति या साइकोथिरैपी श्रीकृष्ण द्वारा एक मनोविश्लेषक व मनोउपचारक के रूप में निष्पादित की गयी जिससे मनोद्वन्द ग्रसित अर्जुन के मन में स्वस्थ व सकारात्मक अंतर्दृष्टि का संचार हुआ । मनो चिकित्सा मे सम्यक अंतर्दृष्टि का बहुत ही अहम रोल होता है, क्योंकि सम्यक अंतर्दृष्टि के अभाव में रुग्ण मनोवृत्तियों से उपजे असामान्य व जीवन बाधक व्यवहार मे बदलाव लाना असंभव होता है। इस प्रकार आधुनिक संज्ञान व्यवहार मनोउपचार या  कॉग्निटिव बिहेवियर थिरैपी – सीबीटी की आदि युक्ति श्रीकृष्ण द्वारा प्रतिपादित की गयी जो कि गीताग्रंथ के श्लोक में परिलक्षित  है।

Ayodhya Samachar

Ayodhya Samachar
Ayodhya Samachar
Ayodhya Samachar

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments