Thursday, November 21, 2024
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सपा के बैकफुट के सात कारण–उदय राज मिश्रा

Ayodhya Samachar

अंबेडकर नगर। उत्तर प्रदेश की सियासत में कांग्रेस की सरकारों के पतन के बाद एक एक कर कुल चार बार सत्तासीन औरकि 2022 के चुनावों में सत्ताप्राप्ति की ललक लगाये समाजवादी पार्टी के पुरसेहाल की चर्चाएं यूँ तो हर खाशोआम की जुबां पर है किंतु अब जबकि चुनावों के नतीजों के बाद और 37 वर्षों बाद एकबार फिर योगी सरकार के नारे को चरितार्थ करते हुए भाजपाई जीत की दूसरी पारी का जश्न मनाते हुए सत्तासुख में मशगूल हैं तो ऐसे में लाजिमी है कि उन कारणों पर विहंगम दृष्टिपात किया जाय कि आखिर वे कौन सी वजहें रहीं जिनके चलते सपा का चढ़ा हुआ ग्राफ जमींदोष हो गया तथा 2017 की तुलना में तिगुनी सीटें जीतने के बावजूद सपाई ख्वाब आकाश हवामहल हो आंखों से उड़ गए।

  दरअसल अगर गौर से देखा जाय तो 10 जनवरी 2022 की तारीख तक अखिलेश यादव की अगुवाई में सपा का चुनाव प्रचार पूरे उफान पर था और कि प्रदेश की जनता भी दबी जुबान सपा के पक्ष में लामबंद होती हुई दिख भी रही थी किन्तु अखिलेश यादव ने पश्चिम बंगाल में जो गलतियां भाजपा ने की थी और सत्ता से बाहर हो गयी थी,कमोवेश वही गलती यहां उत्तर प्रदेश में सपा द्वारा दुहराई जाने लगी। लिहाजा सपा को भी हाथ आती बाजी छटक कर दूर जाती हुए देखने के सिवा और कोई विकल्प शेष नहीं बचा।अब प्रश्न उठता है कि आखिर वह कौन सी गलती थी जिसके कारण पश्चिम बंगाल में भाजपा का पराभव हुआ तथा टीएमसी फिर से सत्ता में आ गयी।

  ध्यातव्य है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा ने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान केवल और केवल ममता बनर्जी पर निशाना साधा था, जिसके चलते भाजपा अपना विकास कार्य,अपनी योजनाएं और भावी नीतियों को पश्चिम बंगाल में जनता के सम्मुख ठीक से रख नहीं पायी और बने बनाये माहौल को हाथ से गंवा बैठी। कदाचित उत्तर प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में भी 2022 का चुनाव केवल अखिलेश बनाम योगी के रूप में याद किया जाएगा।यहाँ भाजपा द्वारा पश्चिम बंगाल में की गयी गलती को अखिलेश यादव ने दुहराया और अपनी रैलियों को महज एकमात्र मुख्यमंत्री योगी पर कटाक्ष और प्रहारों तक सीमित रखा।जिससे सपा अपने कार्यक्रमों और नीतियों को आम जनता तक पहुंचाने में चूक गयी और परिणाम सामने है कि योगी की सत्ता लगातार दूसरी बार प्रचंड बहुमत से आ गयी।इतना ही नहीं अखिलेश द्वारा योगी को बाबा बुलडोजर कहना भी इतना आत्मघाती साबित हुआ कि बुलडोजर भाजपा की जीत का अहम किरदार बन गया।

   समाजवादी पार्टी की हार का दूसरा बड़ा कारण पूर्व में जमीनी नेता और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की नीति रीति से हटकर अलग मार्ग अपनाया जाना भी घातक सिद्ध हुआ।पूर्व मुख्यमंत्री अपने दौर में क्षत्रिय नेता रेवती रमण सिंह, छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र,बेनी प्रसाद वर्मा,कुंडा के राजा भैया तथा मुस्लिम नेता आज़म खान सहित तमाम लोगों की फौज चुनावों के दरम्यान क्षेत्रों में उतार देते थे।जिससे हर तबके के मत थोड़े बहुत मात्रा में सपा को अवश्य मिलते थे और सपा सूबे की सियासत में कामयाबी के झंडे गाड़ने में सफल हो जाते थे।गौरतलब है कि 2022 के चुनावों में अखिलेश वन मैन आर्मी बनकर प्रचार अभियान को सिर्फ अपने तक सीमित रखे और परिणाम सबके सामने है।अगर अखिलेश इन चुनावों में स्वामी प्रसाद मौर्य,प्रोफेसर अभिषेक मिश्र व बेनी वर्मा के पुत्र राकेश वर्मा को भी स्टार प्रचारक बनाकर मैदान में उतारे होते तो 5000 वोटों के अंतर से हारी हुई सीटों को आसानी से जीतकर सत्ता पर काबिज हो सकते थे,जोकि उन्होंने नहीं किया।अलबत्ता भाजपा ने प्रदेश के हर जिले को अपने विभिन्न जातीय नेताओं की रैलियों और दौरों से मथनी की तरह मथ डाला और अखिलेश की बाजी पलट दी।

  सपा की हार की तीसरी बड़ी वजह उनके कार्यकाल के दौरान कानून व्यवस्था की लचर रही स्थिति,दंगों की घटनाएं और आमजनमानस में भीतर ही भीतर बसा हुआ डर रहा।जबकि योगी सरकार में दंगाविहीन उत्तर प्रदेश और माफियाओं पर चले बुलडोजर मतदाताओं को ज्यादा महफूज लगे।दिलचस्प बात तो यह है कि इन चुनावों में मुस्लिम समुदाय ने भले ही सपा को एकमुश्त वोट दिया हो मगर बावजूद इसके उनके दिलोदिमाग से आजतक मुज्जफर नगर के दंगों की याद बिसरी नहीं है और न ही हिंदुओं के दिमाग से मऊ कांड।यही कारण है कि सुरक्षा,शांति और सद्भाव का भाजपा का नारा अखिलेश पर भारी पड़ा और सपा चित्त हो गयी।

    सपा की हार की चौथी और बहुत ही महत्त्वपूर्ण वजह उनके अनेक कार्यकर्ता रहे।जिन्होंने सोशल मीडिया पर चुनाव बाद सरकार बनने पर लोगों को सबक सिखाने,धमकाने,बदला लेने, अधिकारियों को औकात बताने तक की धमकियां प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दी।लिहाजा अति पिछड़ा,अतिदीन और निम्न मध्यम वर्गीय मतदाताओं में चुनावपूर्व खौफ का जो माहौल बना।उससे इनके मत ऐन चुनाव से पहले सपा की जगह भाजपा के पाले में चले गए।कहना गलत नहीं होता कि अगर मौर्य व निषाद मत बिखराव के शिकार न होते तो सपा बिल्कुल हाशिये पर आ जाती और भाजपा इसे दहाई में कर देती।

   समाजवादी पार्टी की शिकस्त की पांचवी वजह वोटों के मौसम वैज्ञानिक बनने वाले दल दल दलबदल का स्वाद चखने वाले बड़बोले स्वामी प्रसाद मौर्य एवम नेवले का सम्भाषण करने वाले ओम प्रकाश राजभर भी रहे।इन दोनों ने जहाँ एकतरफ अपने अपने समाजों के साथ अन्य पिछड़ी जातियों का ठेका ले रखा था वहीं खुद ये अपनी प्रतिष्ठा नहीं बचा पाए।इन दोनों की जुबानों से निकले तीरों ने अखिलेश के अरमानों का ही शिकार किया।जिससे सपा की हवा उल्टी बहने लगी और योगी सरकार की वापसी हुई अन्यथा इस दफा जितना माहौल सपा के पक्ष में था कदाचित ही फिर कभी वैसा हो।

    किसानों की मांगों के नामपर सपा द्वारा प्रायोजित किसान आंदोलन यद्यपि अखिलेश को ऐसी पिच रोल करके प्रदान किया था जिसपर कोई भी मीडियम पेसर तेज़ गेंदबाजी करके विकेट उखाड़ सकता था किंतु अखिलेश यहीं फेल हुए और भाजपा ने राकेश टिकैत की बनाई पिच पर खुद गेंदबाजी करते हुए न केवल सपा को स्टम्प आउट कर दिया बल्कि पिचमैन टिकैत की भी अकड़ ढीली कर दी।

    सत्ता का ख्वाब संजोये सपा द्वारा बीजेपी व अन्य दलों के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करते हुए उन्हें रेवड़ी की तरह टिकट बांटने से जहां सपा के मूल कैडर के कार्यकर्ता नाखुश और उदास हुए वहीं अर्पणा यादव का भाजपा खेमे में जाना सपा की हार का छठवां कारण बना,जो आने वाले समय में भी सपा के लिए नासूर साबित होता दिख रहा है।अम्बेडकर नगर को छोड़कर पूरे प्रदेश में सपा की हार का ये एक अहम व मुख्य कारण है।

    अखिलेश यादव को अपने घरवालों और बन्धु बांधवों को नजरंदाज करते हुए एकमात्र सपा का कर्ताधर्ता बनने की वजह भी उनकी हार की सातवीं वजह बनी।जिसके चलते मुलायम,शिवपाल,धर्मेंद्र आदि एकाध जगहों पर ही सिमट कर रह गए और पारिवारिक मनमुटाव सत्ता से दूर ले गया।

  इसप्रकार कहा जा सकता है कि भाजपा की प्रचंड जीत की मुख्य वजह सपा की गलतियां रहीं जो अब आनेवाले दिनों में भी उसपर भारी पड़ती दिख रहीं हैं।जबकि इसके विपरीत भाजपा की विजय में माफियाओं के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाई,मुफ्त इलाज और अनाज,मुफ्त आवास और शौचालय सही चुस्त दुरुस्त कानून व्यवस्था मुख्य भूमिका अदा की।इतना ही नहीं भय और गुंडागर्दी के पर्याय विकास दुबे,माफिया मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे समाजविरोधियों के खिलाफ योगी का मिट्टी में मिलाने वाला बयान भी आमजन की जुबान पर चर्चा का विषय है,जोकि 2024 के लोकसभाई चुनावों की भूमि पहले से ही तैयार कर रहा है।जबकि सपा का  गिरता ग्राफ निरंतर घटते रहने की मूल वजह सपा का अपराधियों से स्नेह व परिवाद व जातिवादी राजनीति ही जस की तस बनी हुई है,जोकि सङ्घर्ष में पिछडाव कई बड़ी वजह है।

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