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भारतीय रेलवे में लोगों को होने वाली समस्याएं

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Written By – Dwivedi Shubhi
Rural management Student
Shiv Nadar University Eminence Delhi NCRs


मैं ट्रेन में कई बार यात्रा करती हूँ और मुझे एहसास होता है कि ट्रेन में स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। मेरा मजबूत तर्क है कि सरकार इस तरफ क्यों नहीं सोच रही है, क्योंकि भारत की लगभग 2% जनसँख्या हर दिन ट्रेन से यात्रा करती है। भारतीय रेलवे में प्रतिदिन 25 मिलियन से अधिक यात्रियों को ले जाने की क्षमता है। इसमें हम सामान्य डिब्बों के यात्रियों की गिनती नहीं करते हैं। भारतीय रेलवे प्रणाली, जिसे अक्सर देश की जीवन रेखा कहा जाता है, दुनिया में सबसे बड़ी और सबसे जटिल प्रणालियों में से एक है। यह देश के दूरदराज के कोनों को जोड़ते हुए प्रतिदिन लाखों यात्रियों को सेवा प्रदान करती है। इस विशाल पहुंच और महत्व के बजाय, ट्रेनों में पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने में एक बड़ा अंतर है।
इस लेख में हम बताएंगे कि ऐसी आवश्यक सेवाएं क्यों उपलब्ध नहीं हैं, इसका यात्रियों पर क्या प्रभाव पड़ता है, और सरकार इस समस्या के समाधान के लिए क्या कदमउठा सकती है।


रेलवे स्वास्थ्य सेवा के विषय में मेरी टिप्पणी


मैं आपको अपने साथ घटी एक घटना के बारे में बता रही हूँ, जिसे याद करके आज भी मेरी
आँखों में आँसू आ जाते हैं। 31 मई 2024 की यात्रा, जिस दिन मैं अजमेर, राजस्थान से
प्रयागराज लौट रही थी । मैंने देखा कि जयपुर से एक व्यक्ति जो बिहार के पूर्णिया जिले का
निवासी था। जो अपने परिवार को पालने के लिए बिहार से आया था और उनके पालन-
पोषण के लिए राजस्थान में काम कर रहा था, तबीयत खराब होने के कारण घर लौट रहा
था। पर्याप्त पैसे न होने के कारण उसने जनरल टिकट लिया था और अत्यधिक तबीयत खराब
होने के कारण वह स्लीपर क्लास में यात्रा कर रहा था। पैसे न होने के कारण टीसी ने उस
व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार किया। वह पहले से ही बीमार था और उसकी बीमारी लगातार
बिगड़ती जा रही थी। वहां मौजूद लोगों ने गूगल की मदद से रेलवे हेल्थ केयर का नंबर ढूंढने
की कोशिश की। लेकिन ट्रेन में स्वास्थ्य सेवा न मिलने के कारण उसकी तबीयत और बिगड़ती
चली गई। कानपुर पहुंचते-पहुंचते उसकी मौत हो गई। ऐसी कई घटनाएं हर दिन होती रहती
हैं और मेरा अपना अनुभव बहुत असहनीय रहा है जिसमें बीमार पड़ते ही सबसे पहली बात
जो दिमाग में आती है वह है अस्पताल और रेलवे की तरफ से स्वस्थ इलाज न मिलना। इन
घटनाओं ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि यह एक बहुत बड़ी समस्या है जिस पर

सरकार को ज़्यादा ध्यान देना चाहिए और इसके सुधार की दिशा में कदम उठाने चाहिए।
मेरा अनुभव है कि अगर उस समय स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध होतीं तो उसकी जान बच
सकती थी। जब मैंने उसके स्वास्थ्य के बारे में पूछा तो वह सामान्य रूप से बीमार था।
प्रयागराज पहुँचते ही मैंने शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सकी ।
यह कहा जा सकता है कि न्याय तक पहुँच बनाना भी आसान नहीं है।


योजनाओं के क्रियान्वयन एवं सेवा वितरण प्रणाली की वर्तमान स्थिति


भारत सरकार ने 2024-25 में अपने जीडीपी का 13% स्वास्थ्य सुविधा में निवेश किया है।
अन्य क्षेत्रों में निवेश पर तर्क लेकिन मुख्य मुद्दा स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच है। ट्रेनों में स्वास्थ्य
सुविधाएं प्रदान करने में सरकार की विफलता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन
करती है, जो जीवन के अधिकार, भोजन और स्वास्थ्य के अधिकार की गारंटी देती है, जिससे
इस महत्वपूर्ण मुद्दे को तुरंत संबोधित करना और लाखों यात्रियों के लिए सुरक्षित और स्वस्थ
यात्रा अनुभव सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाता है।
स्वास्थ्य भारत के संविधान की राज्य सूची में है। राज्य सरकारें राज्य सूची के विषयों पर
कानून बनाती हैं। लेकिन 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह ने कहा कि संविधान के
तहत स्वास्थ्य को समवर्ती सूची में रखा जाना चाहिए। केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के पास
समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने अधिकार हैं।
सरकार ने एक बहुत ही बेहतर कदम स्वास्थ प्रणाली में शामिल किया है जैसे आभा और
आयुष्मान कार्ड के उपयोग के माध्यम से स्वास्थ चिकित्सा प्राप्त किया जा सकता है लेकिन
इसे प्राप्त करना कितना कठिन होता है इसे एक आम इन्सान ही समझ सकता है जिस समाज
में सत्ता धारी बर्ग की पहुच से ही स्वास्थ्य की प्राप्ति संभव हो

भारत सरकार ने अधिकांश धन बिना शर्त नकद हस्तांतरण में निवेश किया जो उदेश्य से
हटकर पैसे खर्च होते हैं जहाँ लोग बच्चों की शिक्षा, रहने के लिए घर और पहनने के लिए कपडे
जैसी बुनियादी आवश्यकताओ को पूरा करने के लिए पैसे इकट्ठा करने के बारे में सोचते हैं
और योजना बनाते हैं।
लेकिन अचानक स्वास्थ्य खराब होने के कारण वे एकत्रित धन को अस्पताल और दवा पर
खर्च कर देते हैं। लोग अस्पतालों में पैसा खर्च करते हैं और जब उनके पास इलाज के लिए
बजट नहीं होता है, तो वे उच्च ब्याज दरों पर ऋण लेते हैं और कर्ज के जाल में फंस जाते हैं।
जिससे कर्ज का बोझ बढ़ता है और गरीबी बनी रहती है। यह सरकार द्वारा बनाई गई बिना
शर्त सेवा वितरण प्रणाली की विफलता को दर्शाता है।

सरकार लोगों को यह बताकर समस्या का समाधान नहीं कर सकती है कि यह बजट की
कमी के कारण स्वास्थ्य सुबिधा की उप्लाब्श्ता नहीं है साथ ही सरकार द्वारा स्वास्थ्य के लिए
खर्च किया जाने वाला बजट भी लोगों तक नहीं पहुंच रहा है, जो सरकार द्वारा क्रियान्वयन
की विफलता को दर्शाता है।
मैंने अपने अवलोकन में पाया कि रेलवे में यात्रियों को कुछ विशिष्ट स्थितियों में वर्गीकृत
किया जा सकता है जैसे आर्थिक रूप से कमजोर, आर्थिक रूप से मजबूत, शिक्षित और
अशिक्षित/ लोगो के स्वास्थ्य सुविधाओं के संबंध में मेरा अवलोकन यह है कि एक शिक्षित
व्यक्ति के लिए स्वास्थ की सुबिधा का पाना कठिन हो जाता है तो वही अत्यंत गरीब और
अशिक्षित लोगों के लिए यह और भी कठिन हो जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि
सरकार ने लोगों को जागरूक करने और सेवा वितरण प्रणाली जैसी व्यवस्था पर भरोसा
करने की पहल नहीं की है। और दूसरा मुख्य कारण सम्पतियों असमान वितरण है – भारत
का अनुभव

भारत, जो दो शताब्दियों तक ब्रिटिश शासन के अधीन रहा, इन विचारों से अवगत था। यह
उम्मीद की गई थी कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत इन मूल्यों को अपनाएगा। लेकिन
आश्चर्य की बात यह है कि भारत ने लोकतंत्र के दो मुख्य स्तंभों—स्वास्थ्य और शिक्षा—को
अनदेखा कर दिया।

स्वतंत्रता के 75 साल बाद, 2022 में, भारत को वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट में 146 देशों में
129वें स्थान पर रखा गया। रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में, भारत की शीर्ष 1% आबादी ने
राष्ट्रीय आय का 22.6% अर्जित किया और देश की कुल संपत्ति का 40.1% अपने पास रखा।
वहीं, देश के निचले 50% की आय में केवल 13% की हिस्सेदारी रही।
सार्वजनिक मूल्य

न्याय और सही-गलत के मूल्य उन देशों की नींव हैं जो कानून के शासन में विश्वास करते हैं
और जोखिम उठाने की क्षमता रखते हैं। न्याय की नैतिक शक्ति का उदाहरण द्वितीय विश्व
युद्ध के अंत में यूनाइटेड किंगडम में देखा गया, जब देश ने आर्थिक रूप से कमजोर होते हुए
भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHS) की स्थापना की। इसके तहत सभी नागरिकों को निःशुल्क
उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा का अधिकार मिला। यह इस विश्वास पर आधारित था कि
किसी को भी स्वास्थ्य सेवा से वंचित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वह उसे वहन करने में

सक्षम नहीं है। इसी प्रकार, कनाडा और अधिकांश यूरोपीय देशों की राजनीतिक दर्शन
समानता और निष्पक्षता के मूल्यों पर आधारित है, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि राज्य
प्रत्येक नागरिक को समान रूप से स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और अन्य सार्वजनिक सुविधाएं
प्रदान करने का दायित्व निभाए।

इन देशों की सार्वजनिक नीतियों में निहित मूल्य ज्ञान, बहस, और बौद्धिक विमर्श की
संस्कृति के परिणामस्वरूप उभरे हैं। ये दशकों से राज्य और नागरिक, और राज्य और समाज
के बीच संबंधों पर कई सिद्धांतों को जन्म देते आए हैं। जैसे कि जॉन लॉक का सामाजिक
अनुबंध सिद्धांत, जेरेमी बेंथम का उपयोगितावाद, और जॉन रॉल्स का ” न्याय का निष्पक्षता
के रूप में ” परिभाषा।


भारत की स्थिति


भारत ने 200 वर्षों तक ब्रिटिश शासन के दौरान इन विचारों से संपर्क किया, इसलिए यह
अपेक्षा की गई थी कि भारत भी इन मूल्यों को आत्मसात करेगा। इसके बावजूद, स्वास्थ्य
और शिक्षा जैसे लोकतांत्रिक समाजों के दो स्तंभों को नजरअंदाज करना हैरानी का विषय है।
भारत की सामाजिक असमानताएँ और स्वास्थ्य प्रणाली का विकास सामाजिक दृष्टि से, भारत आज भी विश्व के सबसे विभाजित समाजों में से एक है, जहाँ जाति, लिंग, क्षेत्र और वर्ग हमारे जीवन की सीमाएँ तय करते हैं। जन्म यह तय करता है कि व्यक्ति कितने समय तक जियेगा और उसे कौन-कौन से अवसर मिलेंगे। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश (यूपी) की एक गरीब अनुसूचित जाति (एससी) की महिला की जीवन प्रत्याशा केरल की एक गरीब महिला की तुलना में 10 साल कम है। इसी प्रकार, एससी समुदाय की महिलाओं और अन्य सामाजिक समूहों की महिलाओं के बीच प्रसव के दौरान मृत्यु के औसत आयु में लगभग 15 वर्षों का अंतर है।

कुछ प्रमुख मुद्दों की पहचान की गई है कि स्वास्थ्य सेवा पाने के लिए दो से तीन श्रेणियां हैं,
स्लीपर, एसी कोच और सामान्य बूथ, जिसमें सामान्य बूथ का विशेष अवलोकन काफी

दर्दनाक है। इसलिए, यदि एससी, एसटी और ओबीसी को आरक्षण का लाभ दिया जाना है तो
सामान्य बूथ में यात्रा करने वाले यात्री को स्वास्थ्य सेवा जल्दी मिलनी चाहिए। जनरल बूथ
में बजट की कमी के कारण अधिकतर एससी, एसटी और ओबीसी यात्रा करते हैं। वे महंगी
टिकट नहीं खरीद पाते। इसलिए वे न चाहते हुए भी एक राज्य से दूसरे राज्य की यात्रा करते
हैं।
जैसे अधिकतर यात्रा 2 या 3 दिन की होती है उस स्थिति में पुरुष, महिलाएं, बच्चे जनरल में
यात्रा करते हैं, एक महिला जो गर्भवती है, या स्तनपान करा रही महिला, तथा एक महिला
जो मासिक धर्म के दिनों में पीड़ित है, शौचालयों की समस्या, खासकर महिला शौचालय,
बूथ में बैठने के लिए सीट की कमी ,जो कि महिला के लिए यात्रा करना मुश्किल हो जाता है
जो एक कठिन परिस्थिति उनके सामने पैदा होती है जिसका अनुभव एक पीड़ित महिला ही
समझ सकती है/
स्वास्थ्य के साथ-साथ अन्य मुद्दों का उल्लेख करना आवश्यक हो जाता है क्योकि भोजन
उपलब्धता का न होना भी स्वस्थ पर बुरा प्रभाव डालता है तो सात दशक से अधिक समय
पूर्ण होने को है लेकिन सरकार रेलवे की स्वस्थ की पहुच और स्वस्थ बनाये रखने के लिए अन्य
सुबिधाओ पर ध्यान केन्द्रित नहीं किया है जो सत्ता में बने लोगो से प्रश्न करने के लिए मजबूर
करता है की सरकार द्वारा तैयार किए गए स्वास्थ्य सेवा मॉडल में कौन से लोग शामिल हैं?
और उन्हें गुणवत्तापूर्ण सेवा प्रदान करने और इस सेवा में उनका विश्वास बढ़ाने के लिए क्या
पहल की गई है?
ऐसी स्थिति में सरकार की कल्याणकारी नीतियां और कल्याणकारी राज्य बनाने का सपना
उनके छल और झूठ की भावना को दर्शाता है, जो वे सत्ता में बने रहने के लिए लोगों के साथ
बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। लेकिन उनके कल्याण के लिए नीतियों की सही ढंग से जमींन से
जोड़ने के लिए सफल प्रयास नहीं करती है


समाधान


यात्रा कर रहे रेलवे यात्री की कठिनाइयों को शब्दों में बयां करना बहुत ही कठिन है। सभी
तक पहुंच तभी संभव है जब लोग जागरूक हों और स्वस्थ वितरण प्रणाली पर भरोसा करें,
इसलिए स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाना तब तक आसान नहीं है जबतक सरकार उनके
बिस्वास और सेवा बितरण प्रणाली को सुचारू रूप से मौजूद न कर सके
भारत सरकार ने रेलवे स्वास्थ्य सुविधा के लिए धन मुहैया कराया है, लेकिन लोगों को इसे
पाने के तरीकों की जानकारी नहीं है इसलिए पहला कदम सरकार द्वारा दी जाने वाली
स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में जागरूक करना है और वंचित ब्यक्तियो के जीवन शैली को
सुलभ बनाने के लिए रणनीति बनाए, जिसकी दशकों से कमी रही है।

लोगो तक स्वास्थ की पहुच के लिए कुछ नए प्रयास किया जा सकता है जो उनके सेवा
उपलब्धता में सहायता करेगा जैसे स्टेशन पर, बोगियों में ऑडियो डिवाइस जैसी तकनीक
और पोस्टर का इस्तेमाल करके सुविधा के बारे में जानकारी दी जा सके।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर लोगों को स्वास्थ्य व्यवस्था पर भरोसा नहीं है, तो ऐसे
क्षेत्र पर काम किया जाना चाहिए जहां लोग सरकारी योजनाओं और उनके क्रियान्वयन जैसी
सेवा वितरण व्यवस्था पर भरोसा कर सकें।


लेख पूर्णतः लेखिका के विचार व अनुभव है।


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