✍ दुर्गेश पाण्डेय/ सुभाष गुप्ता
अंबेडकर नगर। 2024 लोकसभा के चुनाव में एनडीए के द्वारा दिया गया 400 पार का नारा उस पर ही भारी पड़ गया। उद्देश्य विहीन इस नारे को धरातल पर लाने में जहां एनडीए गठबंधन के नेता व कार्यकर्ता असफल रहे। वही इसी नारे को आरक्षण एवं संविधान बचाओ का हथियार बनाकर इंडिया गठबंधन के नेताओं ने एनडीए के 400 पार उद्देश्य विहीन नारे को भुना लिया। इस नारे का महिमा मंडन करते हुए इंडिया गठबंधन ने 2024 के लोकसभा चुनाव में न सिर्फ अच्छा प्रदर्शन किया बल्कि भारतीय जनता पार्टी को अकेले अपने दम पर सरकार बनाने से भी रोक दिया।पिछली बार अपने दम पर 303 सीट जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी इस बार 272 के बहुमत के आंकड़े को नहीं छू पाई और 240 सीट पर ही सीमट कर रह गई। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के घटक दलों को मिलाकर एनडीए 293 सीटे जीत चुकी है। लेकिन उसे 5 साल मजबूत सरकार चलाने के लिए अपने सहयोगी दलों पर निर्भर रहना पड़ेगा।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनडीए के नेताओं ने चुनावी मंचों से अबकी बार 400 पर का नारा तो दिया। लेकिन उसके पीछे उनका क्या उद्देश्य है,इसे जनता को नहीं समझ पाए। जबकि इंडिया गठबंधन के नेता एनडीए गठबंधन के 400 पार के नारे को लेकर आरक्षण एवं संविधान बचाओ का नारा दिया और इंडिया गठबंधन के कार्यकर्ता भाजपा एवं उसके सहयोगी दलों के द्वारा दिये गये 400 पार के नारे को साकार करने में सफल रहे तो आरक्षण और संविधान बदल दिया जाएगा, साथ ही मोदी के रूप में एक तानाशाह शासक मिल जाएगा।इसके बाद हो सकता है देश में चुनाव ही ना हो, यह बात जनता तक पहुंचने में सफल रहे। वहीं चुनाव के दौरान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के शीर्ष नेता मंचों से संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर को भारत रत्न देकर आरक्षण एवं संविधान का वास्तविक हितैषी होने की बात कहते हुए आरक्षण और संविधान में कोई भी फेरबदल न करने का वादा करते रहे । साथ ही इस नारे को देश के हित में लिए जाने वाले कठोर निर्णय के लिए केंद्र में एक सशक्त एवं मजबूत सरकार की स्थापना के लिए जरूरी बता रहे थे। लेकिन इस बात को भाजपा कार्यकर्ता जनता तक नहीं पहुंच पाए।जिस कारण भाजपा के द्वारा एक सशक्त एवं मजबूत सरकार के लिए दिया गया यह नारा जनता के विश्वास को जीतने में नाकामयाब है।भारतीय जनता पार्टी व एनडीए के घटक नेताओं के साथ स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संविधान व आरक्षण में कोई परिवर्तन न करने की गारंटी भी आधी आबादी को विश्वास में नहीं ले पायी।और काफी संख्या में पिछड़ी एवं अति पिछड़ी जातियों के साथ दलित मतदाता भी भाजपा सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के बाद भी भाजपा से किनारा कर लिया। जिसका नतीजा रहा की शुरू में सफल हो रहा है यह नारा उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों में जातिवाद का शिकार होते हुए धराशाही हो गया।