◆ संगठित अपराधों में कमी परन्तु भूमि विवाद से जुड़े मामले बढ़े
◆ शिकायतों के गुणवक्तापूर्ण निस्तारण न होने लगता रहा है आरोप
लखनऊ। प्रदेश में संगठित अपराधों पर योगी सरकार ने नकेल कसी है। गिरोहबंद फिरौती, अपहरण तथा हत्या जैसे अपराधों के ग्राफ में कमी आई है। लेकिन भूमि विवाद में मार-पीट, हत्या जैसी घटनाओं में प्रदेश सरकार लगाम नही लगा पा रही है। भूमि के छोटे टुकड़े या फिर करोड़ की बेशकीमती जमीन के लिए मामले कब खूनी संघर्ष में बदल जाते है यह पता ही नही लगता है।
सोमवार को देवरिया जनपद में हुई भूमि विवाद में हुई छः हत्या। प्रेमचन्द्र यादव की हत्या के बाद आक्रोशित भीड़ ने एक ही परिवार के 5 सदस्यों को मार दिया। 25 सितम्बर को सुल्तानपुर जनपद में डा धनश्याम तिवारी की पीट-पीट कर हुई हत्या। कौशाम्बी में हुई भूमि विवाद में दलित परिवार के तीन सदस्यों की हत्या। अयोध्या जनपद में तारून थाना क्षेत्र में बुर्जुग की भूमि विवाद में हत्या। ये चंद मामले है जिससे प्रदेश के अपराध का ग्राफ ऊपर जाता है।
प्रदेश सरकार भूमि विवाद निपटाने के लिए जनसुनवाई पोर्टल, भू-माफिया पोर्टल जैसे तहसील दिवस, थाना दिवस जैसे शिकायत प्रकोष्ठ चला रही है। परन्तु शायद इन पर शिकायतों का गुणवत्ता पूर्ण निस्तारण नही हो पा रहा है। भूमि विवाद में सरकार के कई विभागों से संबधित होता है। राजस्व, चकबंदी, शांति व्यवस्था के लिए पुलिस विभाग व अन्य सम्बंधित विभाग। इन विभागों द्वारा की कारवाई कई बार गुणवत्ता से परे रहती है। जिससे विवाद गहरा जाता है। राजस्व विभाग में लम्बित पैमाइश के मामलों के कारण विवाद समाप्त नही हो पाता है।
मुख्यमंत्री के सख्त रवैये के बाद भी नही निपट रहे भूमि विवाद के मामले
सरकार द्वारा संयुक्त रूप से विभागीय टीमें बना कर विवाद निपटानें का प्रयास किया लेकिन यह भी नाकाफी रहा। मुख्यमंत्री लगातार भूमि विवादों के लिए सख्त रहें है। लगातार अधिकारीयों को विवाद में लापरवाही बरतने वालों पर सख्त कार्यवाही का निर्देश भी देते रहें है। लेकिन इन विभागों के कर्मचारियों की लटकाने, भटकाने और टहलाने की नीति के आगे सारे प्रयास फेल नजर आने है।