अयोध्या। डा आलोक मनदर्शन का कहना कि होली पर्व के करीबी दिनों से शुरू होकर बाद तक चलने वाली मनोउन्माद की मनोदशा है जिसके चंगुल में आकर बहुत से किशोर व युवा नशाखोरी, अमर्यादित, अश्लील व आक्रामक व्यवहार तथा अन्य मनोविकृतियो से इस प्रकार आसक्त हो जाते है जिसका दुष्प्रभाव व्यक्तिगत, पारिवारिक व कैरियर पर पड़ता है। उक्त बातें ज़िला चिकित्सालय मे आयोजित कार्यशाला में यह बातें किशोर व युवा मनोपरामर्शदाता डॉ आलोक मनदर्शन ने कही।
उन्होने बताया कि ऐसे युवाओं में व्यक्तित्व विकार भी पाये जाते हैं जिनमे बॉर्डर लाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर, पैरानॉयड पर्सनालिटी डिसऑर्डर,ऐंटी सोशल पर्सनालिटी डिसआर्डर प्रमुख हैं। होली का पर्व इन लोगो के लिये उत्प्रेरक का कार्य करता है जिससे वे अपनी मनोविकृतियो पर नियंत्रण खोने का स्वनिर्मित बहाना बनाकर नशाखोरी व अन्य उन्मादित कृत्यो पर उतारू हो जाते हैं और फिर शुरू हो जाती मनोविकारों का नेक्स्ट गियर। उन्होने बताया कि ऐसे लोगों मस्तिष्क के भावनात्मक केंद्र अति सक्रिय होता है जबकि मनोसंयम का केंद्र सेरेब्रम पूर्ण विकसित नही होता। साथ ही मनोउत्तेजक माहौल में कॉर्टिसाल व एड्रेनलिन न्यूरोट्रांसमीटर का स्राव अधिक हो जाता है कि मनोउन्माद के एक्सेलेरेटर का कार्य करता है। बचाव व उपचार के बारें में उन्होने बताया कि होली हिडोनिया से बचाव में परिजन व अभिभावकों का अहम रोल है। अभिभावक अपने पाल्य के व्यवहार व क्रिया कलापो पर पैनी नज़र रखें तथा उनसे मैत्री पूर्ण सामंजस्य इस तरह बनाये कि किशोर व युवाओ की अंतर्दृष्टि का सम्यक विकास हो सके जिससे वे अपने व्यक्तित्त्व विकार को पहचान सकें और उनमें विकृत समूह दबाव या परवर्टेड पीअर प्रेशर से निकलने का आत्मबल विकसित हो सके। यदि असामान्य व उद्दण्ड व्यहार लगातार दिखे तो मनोपरामर्श अवश्य लें।