अयोध्या। अंर्तराष्ट्रीय प्रास्थेटिक्स एवं आर्थोटिक्स दिवस के अवसर पर प्रास्थेटिक आर्थोटिक एशोसिएशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय मंत्री अजीत प्रताप सिंह ने बताया की कृत्रिम अंग एवं शरीर के सहायक उपकरण की विशेषज्ञता में आधुनिक तकनीकि के माध्यम से प्रगति के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि अस्सी के दशक में मैकेनिकल तकनीक पर आधारित कृत्रिम अंगो का स्थान अब बायोनिक मायोइलेक्ट्रीकल हैंड ने ले ली है जिसके कारण न केवल हाथ के पंजो की कार्य क्षमता बढ़ी है। बल्बी सेंसर आधारित होने के कारण इनका संचालन भी सुविधा जनक है। वनज में हल्के होने के कारण तथा सामान्य हाथ को मैच करने के कारण दिव्यांगजनों में इसकी स्वीकार्यता भी बढ़ी है।
उन्होंने बताया कि इसी प्रकार आटोमैटिक नी ज्वाईट तथा विभिन्न प्रकार के पैर के पंजो की उपलब्धता ने पर्वतारोहण से लेकर तैराकी तक हर क्षेत्र दिव्यांगो के लिए सुलभ कर दिया है। देश के अनेकों खिलाड़ियों ने पैराओलंपिक में पदक लाकर देश को गौरवांवित किया है। कृत्रिम अंग तथा शरीर सहायक उपकरण की आधुनिक तकनीक से यह सब संभव हो पाया है।
उन्होंने बताया कि कैंसर तथा सड़क दुर्घटना ने कृत्रिम अंग विशेषज्ञता को नई चुनौती दी। जहां केवल हाथ या पैर ही नही बल्कि शरीर का कोई भी अंग काटा जा सकता है। इस चुनौती में कृत्रिम अंग विशेषज्ञता ने सौंदर्य पुर्नस्थापन के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति की है।
उन्होंने बताया कि स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाएं शल्य क्रिया के पश्चात ब्रेस्ट प्रोस्थोसिस के प्रयोग से सामान्य जीवन जी रही है। कृत्रिम स्तन जो कि सिलिकान से निर्मित किया जाता है। उंगली कट जाने पर अब एक उंगली भी कृत्रिम लगाई जा सकती है। नाक, कान तथा जबडे भी कृत्रिम रूप से निर्मित कर लगाए जा सकते है। उन्होंने कहा कि योग्यता प्राप्त प्रोस्थेटिस्ट एवं आर्थोटिस्ट से कृत्रिम अंगो का निर्माण कराएं।