कुमारगंज, अयोध्या। जनपद मुख्यालय से बत्तीस किलोमीटर दक्षिण मिल्कीपुर तहसील क्षेत्र के चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग पर पौराणिक स्थल आस्तीक आश्रम लोगों की आस्था व विश्वास का केंद्र बना हुआ है। पड़ोसी जिलों के श्रद्धालु बाबा आस्तीक के मंदिर पर घर की सुख शांति की मिन्नते मांगने आते हैं। श्रावण मास की अष्टमी तिथि से शुरू होने वाले आस्तीकन मेला रक्षाबंधन पर्व तक चलता है। बाबा आस्तीक के धाम पर दशमी तिथि को बड़ा मेला लगता है। आस्तीकन बाजार में आस्तीक मुनि का आश्रम है। अष्टमी तिथि के दोपहर के आसपास के चौबीस गांवों में ढाई दिन का बरौआ (बराव) रहता है। जहां पुरुष किसान हल कुदाल बुवाई, निराई, फावड़ा आदि चलाने सहित कुछ अन्य कार्यों को करने की मनाही रहती है, वहीं महिलाएं भी शील, चकिया आदि सामानों का भी प्रयोग नहीं करती हैं। लोगों का मानना है कि जो लोग इन नियमों का उल्लंघन करते हैं उनसे बाबा आस्तीक नाराज हो जाते हैं और सर्प का रूप धारण कर डंस लेते हैं। नाग पंचमी व दशमी तिथि के दिन आश्रम के पुजारी पर बाबा की सवारी होती है और पुजारी आश्रम से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित अपने आवास बीरबल का पुरवा से पूजा हवन इत्यादि करने के पश्चात खेतों के रास्ते दौड़ते हुए आश्रम के पास स्थित सरोवर में कूद जाते हैं, स्नान के बाद आस्तीक मुनि की पूजा अर्चना करते हैं इस दौरान आम जनमानस बाबा के दर्शन पूजन के लिए मंदिर परिसर मे सैकड़ो की तादात में मौजूद रहता है ।
आस्तीक आश्रम के बारे में श्रीमद् भागवत पुराण के दशम स्कंध में उल्लेख है कि महाराजा परीक्षित की मृत्यु सर्प के काटने से हुई थी, मृत्यु के प्रतिशोध में उनके पुत्र जन्मेजय पृथ्वी से सांपों को समूल नष्ट करने के लिए विशाल यज्ञ का आयोजन किया था, यज्ञ में सभी सांपों के भस्म हो जाने के बाद तक्षक नामक नाग देवराज इंद्र के सिंहासन से लिपट गया यज्ञ में जब तक्षक नाग को भस्म करने के लिए मन्त्रोच्चार किया गया तो इंद्र का सिंहासन हिल उठा इसके उपरांत देवताओं के अनुनय-विनय से आस्तीक मुनि ने तक्षक नाग को क्षमादान दे दिया, तभी से यह मान्यता चली आ रही है कि आस्तीक मुनि का नाम लेने मात्र से नाग वंश के आक्रोश से मुक्ति मिल जाती है।