Saturday, November 23, 2024
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शिक्षा का गिरता स्तर और शिक्षकों की भूमिका–उदय राज मिश्रा

Ayodhya Samachar

अंबेडकर नगर। आचार्य देवो भव और गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु:गुरुर्देवो महेश्वर: तथा गुरुकुम्हार शिष कुम्भ है आदि आदि पदवियों से अलंकृत शिक्षक समाज सदैव से किसी भी राष्ट्र का निर्माता और मनुष्यों के जीवन को सोद्देश्य बनाने वाला सर्जनहार रहा है।कदाचित सम्पूर्ण विश्व में सर्वप्रथम आदिगुरु के रूप में स्थापित कृष्ण द्वैपायन व्यास के जन्मदिवस आषाण पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा के रूप में मनाए जाने का यही एकमात्र उद्देश्य है कि असारे खलु  संसारे सारम गुरु वन्दनम किन्तु वर्तमान परिदृश्य में जहाँ दिनोंदिन शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है वहीं शिक्षकों की प्रतिष्ठा भी दाव पर है।कदाचित यह स्थिति सोचनीय है।

      इतिहास साक्षी है कि जबजब शिक्षक अपने उद्देश्यों से विरत हुआ है तबतब राष्ट्रवन्दना के स्वर मंद हुए हैं।फलत:देश पराधीनता के साथ-साथ सदियों तक मानसिक दासता का भी शिकार हुआ।यही कारण है कि किसी भी राष्ट्र के उत्थान और पतन के लिए कभी भी राजसत्ताओं या अधिकारियों अन्यथा कि नेताओं को नहीं अपितु शिक्षकों को ही जिम्मेदार और जबाबदेह माना जाता है।शिक्षक राष्ट्र की दिशा और दशा के निर्धारक औरकि उन्नायक होते हैं।

    राष्ट्रनिर्माण में जहाँ तक शिक्षकों की भूमिका का प्रश्न है तो यह बात मुक्तकंठ से सभीलोग स्वीकार्य करते हैं कि शिक्षक ही युगनिर्माता हैं किंतु वर्तमान परिवेश में इसतरह की सोच में गिरावट भी आई है।जिसके कारण विद्यार्थियों में चारित्रिक ह्रास और समाज में विघटन की बढ़ती प्रवृत्तियां पुनः अधिक मात्रा में सिर उठाने लगी हैं।कदाचित यह स्थिति भयावह तथा शिक्षकों के साथ-साथ समाज के लिए भी आत्ममंथन और चिंतन की विषयवस्तु है।जिसपर विचार किया जाना चीन और पाकिस्तान सीमा पर रणनीति बनाने से कम आवश्यक नहीं है।

   कोरोना और आपदा के दौर में जबकि शिक्षा के औपचारिक माध्यम बन्द पड़े थे तथा पूरा सिस्टम लथरपथर थे।ऐसी स्थिति में अनौपचारिक और अन अनौपचारिक अभिकरणों की बढ़ती उपादेयता भी इस बात पर बल देती है कि जबतक शिक्षक अनौपचारिक माध्यमों यथा दूरदर्शन,आकाशवाणी,समाचारपत्र,वाचनालय,आंगनबाड़ी केंद्र और अन अनौपचारिक माध्यमों की कमान नहीं संभालेगा तबतक न तो समाज का कल्याण होने वाला है और न राष्ट्र का उत्कर्ष ही हो सकता है।अस्तु नवीन चुनौतियों को स्वीकार्य करते हुए तदनुसार नवीन नवाचारों और उपायों को व्यवहृत करना भी शिक्षकों के लिए आवश्यक ही नहीं अपितु अपरिहार्य हो गया है।अन्यथा शिक्षा दफ्तरों में कैद होती जाएगी और राष्ट्रपुन:सांस्कृतिक व मानसिक दासता का शिकार हो जाएगा।इसप्रकार नवीन दुष्कर परिस्थितियों पर विजय पाने का एकमात्र उपाय यही है कि शिक्षक जागृत हो अपने उद्देश्यों के प्रति सजगतापूर्वक तल्लीन हों।जिसके अभाव में सामाजिक चेतना और जनजागरण कभी भी सम्भव नहीं है।

   शिक्षा के गिरते स्तर के लिए जिम्मेदार कौन है?यह भी कभी विश्वगुरु रहे भारतवर्ष के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विचारणीय है।कहना अनुचित नहीं होगा कि शिक्षा में बढ़ते सरकारी हस्तक्षेप,अधिकारियों की भ्रष्ट प्रवृत्ति और शिक्षकों के एकबड़े तबके में जातीयता के बढ़ते पुट तथा कर्तव्यहीनता का पनपता भाव आदि शिक्षा के दिनोंदिन गिरते स्तर के लिए प्रमुख जिम्मेदार कारक हैं।इस बाबत राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान से अलंकृत और जानेमाने शिक्षक ज्ञानसागर मिश्र बेहिचक स्वीकार करते हैं कि सरकारों ने जबसे वातानुकूलित कक्षों में बैठकर शिक्षानीतियों का निर्धारण करना शुरू किया औरकि अधिकारीवर्ग उन्हीं नीतियों को अपना कर्तव्य समझकर अनुपालन करवाने में जुट गया तबसे शिक्षकों के विचारों की उपेक्षा का क्रम शुरू हुआ।फलत:शिक्षक बेमन से उन नीतियों के क्रियान्वयन को विवश होता गया जो धरातल से कोसों दूर और अव्यवहारिक थीं।यही कारण है कि शिक्षकों में निरुद्देध्य की भावना पनपने लगी औरकि एक बड़ा वर्ग अधिकारियों तथा राजसत्ताओं का चाटुकार बनकर उभरने लगा।जिससे जहां शिक्षकों की एकता भंग हुई वहीं सरकारें फूट डालो और राज करो कि नीति पर चल पड़ीं,जोकि आजतक जारी है।लिहाजा शिक्षा बेपटरी हो गयी।श्री मिश्र के अनुसार आज भी व्यास और बाल्मीकि परम्परा के शिक्षक बहुतायत में हैं किंतु सरकारी और प्रशासनिक स्तर पर उन्हें भी अपने कार्यों हेतु विवश होने के कारण शोषण का शिकार होना पड़ता है।जिससे उनका मनोबल गिरता है।अतः आज भी यदि सरकार और सरकारी अधिकारी दुरुस्त हो जाएं तो शिक्षकों को अपना उद्देध्य निर्धारण करने में समय नहीं लगेगा।ध्यातव्य है कि इस निमित्त सरकारों को भी शिक्षकों के सारे देयकों और उनकी परिलब्धियों को ऑटो मोड पर उन्हें समयान्तर्गत प्रदान करना सर्वथा समीचीन होगा।अन्यथा वेतन के लिए याचना करता हुआ शिक्षक राष्ट्रनिर्माण हेतु कितना प्रस्तुत होगा यह विचारणीय है।

   सारसंक्षेप में इतना ही कहा जा सकता है कि वेद व्यास की जयंती घर घर में मननी चाहिए तथा गुरुपूर्णिमा के दिन से ही सही गुरुओं के प्रति सम्मान की भावना आमजनमानस को व्यक्त करनी चाहिए।कदाचित राष्ट्र के उत्थान हेतु इसके सिवा अन्य कोई उपागम भी नहीं है।

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