संक्षेप में – दुनिया डिजिटल लत से बचने के लिये सोशल व डिजिटल प्लेटफॉर्म के सुरक्षित इस्तेमाल को हेल्थ गाइड लाइन मे किया गया शामिल । मनोपरामर्शदाता डॉ आलोक मनदर्शन ने बताए कारण व बचाव के तरीके।
अयोध्या। डिजिटल मीडिया की लत से मनोस्वास्थ्य को नया खतरा पैदा हो रहा है। जिसकी वजह से अवसाद, बेचैनी,चिड़चिड़ापन, आक्रमकता,अनिद्रा बढ़ रहें है।
विश्व मनोस्वास्थ्य दिवस 10 अक्टूबर की पूर्व संध्या पर परमहन्स कॉलेज में एनएचएम द्वारा स्थापित क्यू क्लब में मनोस्वास्थ्य की नयी चुनौतियां विषयक कार्यशाला में मनोपरामर्शदाता डॉ आलोक मनदर्शन ने बताया कि डिजिटल मीडिया के अधिक स्क्रीन एक्सपोजर से ब्रेन में फील गुड मनोरसायन डोपामाइन का स्राव होने लगता है जिससे आनन्द व उत्तेजनामक तलब पैदा होती है तथा लगातार एक्सपोजर से बैचैनी व अशांत मनोभाव हावी हो सकता है। यह स्थिति अवसाद, उन्माद, एंग्जायटी डिसऑर्डर, ओ सी डी, पैनिक एंग्जायटी, मादक द्रव्य व्यसन, अमर्यादित व अनैतिक व्यहार, सेक्सटिंग व कंपल्सिव गैम्बलिंग जैसे मनोविकारो का उत्प्रेरक साबित हो रही है। इन्ही दुष्प्रभावों के मद्देनजर पूरी दुनिया डिजिटल लत से बचने के लिये सोशल व डिजिटल प्लेटफॉर्म के सुरक्षित इस्तेमाल को हेल्थ गाइड लाइन मे शामिल कर लिया तथा मनोस्वास्थ्य के सार्वभौमिक मानवाधिकार को इस वर्ष का मुख्य विषय बनाया है । कार्यशाला की अध्यक्षता क्यु क्लब के नोडल ओफिसर प्राचार्य डा सुनील तिवारी तथा संयोजन डा अमरजीत व डा सुधांसु ने किया।
बचाव- डिजिटल एडिक्शन ओब्सेसिव कंपल्सिव मनोरोग के अंतर्गत आता है । यह एक प्रोसेस अडिक्शन है और किसी अन्य नशे की लत की तरह इसकी भी मात्रा बढ़ती जाती है जिसे एडिक्शन टॉलरेंस कहा जाता है तथा लत पूरी न हो पाने पर बेचैनी भी होती है जिसे डिजिटल विद्ड्राल लक्षण कहा जाता है। ऑनलाइन गैंबलिंग, बेटिंग, डेटिंग गेमिंग, साइबर सेक्सिंग इनमे प्रमुख हैं। आनन्द की अनुभूति कराने वाले मनोरसायन डोपामिन की असामान्यता प्रमुख भुमिका निभाता है। डिजिटल फास्टिंग या डिजिटल उपवास ही इसका सम्यक उपचार व बचाव है। मनोरंजन के पारम्परिक तौर तरीकों व सामाजिक मेलजोल व रचनात्मक क्रिया कलापों को भी बढ़ावा देने के साथ आठ घण्टे की गहरी नींद अवश्य लेनी चाहिये और डिजिटल एडिक्शन जनित मनोदुष्प्रभावो से न निकल पाने की दशा में मनोपरामर्श अवश्य ले।