बसखारी अंबेडकर नगर। शारदीय नवरात्र का धार्मिक पर्व उल्लास पूर्वक अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। नवरात्र के प्रथम दिन जहां भक्तों ने अपने घरों में कलश स्थापना कर कुछ पंडालों के पट प्रथम दिन ही खोल दिए थे। वही सप्तमी के दिन माता कालरात्रि की आराधना के साथ वैदिक मंत्र उच्चारण के बीच माता दुर्गा की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करते हुए पूजा पंडालों को संजीवता प्रदान की गई। बुधवार को देवों में प्रथम पूजनीय गणेश जी की वंदना के साथ दुर्गा पूजा पंडालों में पहुंचे पुरोहितों ने विशेष पूजा आराधना करते हुए वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच सभी देवी देवताओं का आह्वान करते हुए माता दुर्गा की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा किया। इसके बाद पूजा पंडालों के पट भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिए गए। पंडालों की मनमोहक सजावट एवं झिलमिल झाड़रों की अद्भुत छठ्ठा से गांव बाजार कस्बे जगमगा उठे। देवी गीत की सुरीली भक्ति मय धुन से क्षेत्र का वातावरण भक्तिमय हो गया। पंडालों पट के खुलने के बाद भक्तों के भीड़ भी माता दुर्गा की पूजा अर्चना में जुट गई।3 अक्टूबर से शुरू हुए शरदीय नवरात्र का बुधवार को सातवां दिन है। नवरात्रि के सातवें दिन मां नवदुर्गा के सातवें स्वरूप मे माता कालरात्रि की विशेष पूजा आराधना करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है। मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और शत्रुओं का नाश भी हो जाता है। माता का रंग काला होने के कारण इन्हें कालरात्रि कहा गया है। नवरात्रि के सप्तमी के दिन भक्तों ने घी का दीपक जलाकर लाल पुष्प अर्पित करते हुए माता कालरात्रि को प्रिय गुड का भोग लगाकर पूजा अर्चना की। मां दुर्गा के सातवें स्वरूप माता कालरात्रि के नाम से प्रतीत होता है कि मां दुर्गा का यह रूप भयानक है। लेकिन इनके भयानक रूप को देखकर किसी भी प्रकार से भयभीत व आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।यह सदैव ही भक्तों का शुभ करती हैं इस कारण इन्हें शुभंकरी मां के नाम से भी पूजा जाता है। माता कालरात्रि की सच्चे मन से उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी शक्तियों के दरवाजे भक्तों के लिए खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां माता के नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर भागने लगती है। इसलिए दैत्य,दानव,राक्षस और भूत प्रेत इनके स्मरण से ही भयभीत हो जाते हैं। इनकी सच्चे मन से आराधना करने से मनुष्य शत्रुओं पर विजय प्राप्त तो करता ही है और साथ ही उसे सदैव शुभदायक फल की प्राप्ति भी होती है।