अयोध्या। उदया पब्लिक स्कूल में आयोजित किशोर व्यक्तित्व विकार प्रबंधन कार्यशाला में डा आलोक मनदर्शन ने बताया कि तम्बाकू मे पाया जाने वाला निकोटिन नामक पदार्थ पफ लेने या अन्य रूप में सेवन करने के कुछ सेकंड्स में ब्लड मे पहुंचकर ब्रेन के निकोटिन रिसेप्टार के माध्य्म से हैप्पी हार्मोन डोपामिन व ऑक्सीटोसिन का श्राव बढ़ा देता है जिससे अच्छे मूड व उमंग की अनुभूति होती है। यह अनुभूति कुछ ही देर टिकने के कारण बार बार इसकी चाहत होती है और शुरू होती है तम्बाकू की लत या निकोटिन डिपेंडेंस। निकोटिन की मात्रा बढ़ने के साथ ही तलब की तीव्रता भी बढ़ती जाती है जिसे निकोटिन-टालेरेन्स कहा जाता है ।
तम्बाकू की लत मे जाने के जेनेटिक, पैरेंट्स व पीयर प्रभाव, अवसाद या मनोरोग,अन्य नशा व युवा उम्र जैसे कारक प्रमुख हैं। नार्सिसिस्टिक पर्सनालिटी या बड़ा दिखने के मनोविकार से किशोरों मे बढ़ रही है टोबैको यूज डिसऑर्डर।
उन्होनें इसके दुष्प्रभाव बताते हुए कहा कि तम्बाकू का पारम्परिक प्रयोग स्मोकिंग व स्मोकलेस रूप में होता है । स्मोकर्स के आसपास के लोग भी स्मोक के परोक्ष शिकार होतें है जिसे पैसिव स्मोकर कहा जाता है । अब ई -सिगरेट भी काफ़ी प्रचलन में है जिसमे सिन्थेटिक निकोटिन भाप होती है जिसे टोबैको फ्री निकोटिन या वेपिंग भी कहा जाता है। आज कल युवाओ मे इसका चलन काफी है । ई सिगरेट पारम्परिक सिगरेट से कम हानिकार है पर यह भी हानिकारक ही है। तम्बाकू में अस्सी से ज्यादा कैंसरकारी तथा सैकड़ो अन्य हानिकारक तत्व होते है। फेफड़े, मुख ,गले,पेट व किडनी का कैंसर, मुख व दन्त रोग, हृदय रोग व आघात, डाइबिटीज़,मोतियाबिन्द,मानसिक व मस्तिष्क रोग ,सांस रोग,नपुन्सकता व बांझपन, समय-पूर्व व कम-वजन प्रसव आदि प्रमुख तम्बाकू जनित दुष्प्रभाव हैं ।
डा मनदर्शन ने बताया कि तम्बाकू सेवन छोड़ने मे असमर्थ होने पर निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरेपी बहुत ही कारगर है। इसमें सिंथेटिक निकोटिन च्युइंगम,टॉफी, पैच, स्प्रे या इन्हेलर के रूप में दिया जाता है जिससे निकोटिन न मिलने पर वाली मनोशारीरिक या विद्ड्राल समस्या नियंत्रित रहने के साथ ही ब्रेन को कॉग्निटिव थेरेपी के द्वारा स्वस्थ किया जाता है । कार्यशाला की अध्यक्षता जीवेन्द्र सिंह व संयोजन निधि सिंहा ने किया।