अयोध्या। क्रिकेट महासमर के फाइनल परिणाम के साथ ही लोगों का मन अनचाहे विरोधाभाषी विचारों व मनोंभावों के बीच इस प्रकार झूल रहा है, जैसे घड़ी का पेन्डुलम। परिणाम-द्वन्द से उत्पन्न मानसिक रस्साकशी में क्रिकेट प्रेमी की मानसिक ऊर्जा क्षीण हो रही है। तथा मस्तिष्क में तनाव उत्पन्न करने वाले रसायन कार्टिसॉल का स्राव बढ़ रहा है। जिससे झुंझलाहट, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, सरदर्द, उलझन, बेचैनी, ब्लडप्रैशर व शुगर का बढ़ना, दिल की धड़कन बढना व पेट खराब होना जैसे लक्षण भी दिखायी पड़ सकते हैं। जिला चिकित्सालय के मनोपरामर्शदाता डॉ0 आलोक मनदर्शन ने इस मनःस्थिति को रिजल्ट रिएक्टिव न्यूरोसिस नाम से परिभाषित किया है।
डा मनदर्शन ने बताया कि मोबाइल व सोशल मीडिया पर स्वसमीक्षाओं का दौर चल रहा है। सार्वजनिक स्थलों व चाय पान की दुकानों में भी चर्चाओं व बहसों का दौर देखा जा रहा है। कुल मिलाकर लोगों में एक आक्रोस व हताशा भरी आवेशित मनोदशा का मिश्रण देखने को मिल रहा है। गौरतलब पहलू यह है कि अपनी बात को एक दूसरे से साझा करके मन को हल्का करने की मनोदशा लोगों पर हावी दिख रही है। इस मनोदशा को हाईपर-लोक्वेन्सी कहा जाता है ।
मनोगतिकीय विश्लेषण व बचाव- डा. आलोक मनदर्शन के अनुसार आवेशित मनोदशा में कार्टिसाल एवं एड्रिनलिन मनोरसायनों का श्राव बढ़ जाता है, जिससे ज्यादा बोलने, अपनी बात को पूरा कर डालने का एक मादक खिचाव इस प्रकार हो जाता है कि मन बार-बार एक ही बात को भिन्न भिन्न लोगों से परिचर्चा करने को बाध्य हो जाता है। भले ही हमारा मन व शरीर कितना ही थक चुका हो। परिचर्चा और वार्तालाप एक सीमा तक तो हमारे मन और शरीर के लिए फायदेमन्द साबित होता है, परन्तु इसकी अधिकता हमारे मनो शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि बात-चीत व वार्तालाप के मनोखिचांव को सीमित दायरे में ही रखा जाये।