अम्बेडकर नगर। भारत एक उत्सवधर्मी देश है और सूर्य उत्तरायण के पश्चात खिचड़ी पर्व सनातन धर्म का प्रथम प्रमुख महोत्सव है।जिसे मकर संक्रांति,पतंग महोत्सव,बिहू,उत्तरायणी और पोंगल आदि नामों से देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। किंतु खिचड़ी पर्व मकर संक्रांति को ही क्यों मनाई जाता है और कि इसे मकर संक्रांति कहे जाने के वैज्ञानिक व खगोलशास्त्रीय आधार क्या हैं?आदि आदि जिज्ञासाएं अवश्यमेव विचारणीय हैं।जिनपर सम्यक विमर्शपूर्वक प्रस्तुति समय की मांग और वक्त की नजाकत है।
आधुनिक वैज्ञानिकों और खगोलशास्त्रियों के अनुसार पृथ्वी,सूर्य और चंद्र की पारस्परिक गतियों के फलस्वरूप ही दिन और रात तथा ऋतुओं में परिवर्तन होता है।किंतु यह रहस्य भारतीय ऋषियों में लाखों वर्षों पूर्व ही न केवल विभिन्न ग्रंथों में वर्णित कर दिया था अपितु उन्होंने अपनी दिव्य ज्ञान से जो जो व्याख्याएं की हैं,आधुनिक विज्ञान भी उनका लोहा मानता है।
भारतीय ऋषियों और खगोल वैज्ञानिकों द्वारा पृथ्वी 365 दिन 6 घंटे में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करती है।इसे ही एक वर्ष की संज्ञा दी जाती है।इसी तरह चंद्रमा 354 दिन 11 घंटों में एक वर्ष में पृथ्वी की 12 परिक्रमा करते हैं।इस प्रकार एक वर्ष में दोनों परिक्रमाओं के मध्य लगभग 10 दिनों का अंतर आ जाता है।जिसके कारण एक वर्ष में 12 महीने होते हैं।चंद्रमा के प्रत्येक चक्कर में एक राशि की प्रधानता होती है किंतु महीनों के नाम प्रधान नक्षत्रों के आधार पर रखे गए हैं।इस तरह प्रत्येक तीन वर्ष में सूर्य और चंद्र तथा पृथ्वी की परिक्रमाओं में लगभग 30 दिनों का अंतर आ जाता है।इसे ही अधिकमास या पुरुषोत्तम माह या मलमास कहते हैं।किंतु जिस माह में मास पर्यंत सूर्य धनु या मीन राशि में ही रहते हैं अर्थात एक राशि से दूसरी राशि में नहीं जाते उसे खरमास कहते हैं।इसमें सभी प्रकार के देवाराधन होते हैं किंतु नवीन गृह प्रवेश,मांगलिक कार्य आदि निषेध होते हैं।
खगोलशास्त्र की भाषा में सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है।खिचड़ी पर्व के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं।यही कारण है कि इस दिन मकर संक्रांति का महोत्सव मनाया जाता है।इसी दिन से सूर्य पृथ्वी की तरफ थोड़ा उत्तर दिशा में झुककर गमन करते हैं।जिसके कारण यह पर्व उत्तरायण पर्व के नाम से भी मनाया जाता है।
भारतीय ऋषियों में वर्ष को दो अयनों,महीने को शुक्ल एवं कृष्ण दो पक्षों तथा पक्षों को दो – दो सप्ताहों में विभक्त कर जिस सटीकता के साथ काल गणना की है।उसकी बराबरी आज भी खगोलशास्त्रियों के लिए किसी सपने से कम नहीं है।आज से साढ़े पाँच हजार सालों पूर्व सूर्य उत्तरायण पर्व ही पितामह भीष्म ने देह त्याग किया था।जिससे इस बात की प्रामाणिकता को और भी बल मिलता है कि सूर्य उत्तरायण का यह पर्व आदिकाल से सनातन प्रेमियों के लिए पवित्र पर्व रहा है।
प्रतिवर्ष मघा नक्षत्र प्रधान माघ महीने में आयोजित होने वाला यह पर्व अपनी वैज्ञानिकता के लिए भी प्रसिद्ध है।शीत ऋतु में जब समस्त प्राणी ठंड और शीत के प्रकोप से त्राहि त्राहि करते हैं,तब उत्तरायण पर्व से दिन गर्म होने शुरू हो जाते हैं,अक्षय ऊर्जा का नवीन प्रवाह होने से प्रकृति में नवीन संचेतना जागृत होने लगती है।ऐसे में पवित्र नदियों,सरोवरों में स्नान करने व मुंडन करवाने से सूर्य द्वारा धरती पर पड़ने वाली किरणें सीधे मस्तिष्क को प्राप्त होने से यह पर्व रोग विमुक्ति पर्व भी कहलाता है।इस दिन देश विदेश में जहां जहां भी भारतीय रहते हैं,स्नान दान की परम्परा है।
मकर संक्रांति का पर्व वैसे तो सभी स्थानों पर हर्षोल्लास से मनाया जाता है किंतु भारत में मुख्य आयोजन प्रयाग स्थित गंगा,यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम पर किया जाता है।यहां मकर संक्रांति से शिवरात्रि पर्यंत चलने वाला माघ मेला विश्व प्रसिद्ध है।वर्ष 2025 विक्रम संवत 2081 का महाकुंभ प्रत्येक 144 वर्षों में पड़ने वाला यादगार पर्व है,जबकि कुंभ प्रत्येक 12 वर्षों बाद आयोजित किया जाता है।
मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व के नाम से मनाए जाने का मुख्य कारण नाथ पंथ के महान योगी गुरु गोरखनाथ और अलाउद्दीन खिलजी के बीच हुई युद्ध में नाथ योगियों की जीत है।ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार जब युद्ध में खिजली की सेना के समक्ष नाथ योगियों के लिए भोजन प्रबंध करना एक चुनौती बन गई तो गुरु गोरखनाथ ने अपने संन्यासियों को चावल में उड़द,मूंग डालकर पकाकर खाने को कहा।जिससे न केवल भोजन की समस्या हल हो गई अपितु खिचड़ी खाने से सैनिकों में नवीन ऊर्जा का प्रस्फुटन हुआ।युद्ध में विजय मिलने पर मकर संक्रांति के ही दिन नाथ योगियों ने खिचड़ी बनाकर प्रसाद स्वरूप स्वयं भी ग्रहण किया और सबको बांटा।तभी से मकर संक्रांति का पर्यायवाची खिचड़ी शब्द हो गया।
मकर संक्रांति को तिल व गुड की बनी वस्तुएं खाने तथा खिचड़ी का सेवन व दान से पुण्य प्राप्ति होती है,ऐसा शास्त्रों में वर्णित है।इस वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी तदनुसार दिन मंगलवार को प्रातः 8:55 बजे से शुरू होकर अपराह्न 12:51 बजे तक रहेगी।जिसमें स्नान दान आदि का अमृत तुल्य फल है।