Saturday, November 23, 2024
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अवध विवि में ‘मर्यादा पुरुषोत्तम रामः एक वैश्विक आदर्श‘ विषयक अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

Ayodhya Samachar


अयोध्या। अवध विश्वविद्यालय के स्वामी विवेकानंद सभागार में सोमवार को अवध विवि, बी.एन.के.बी पी. जी. कॉलेज, अम्बेडकर नगर और सावित्री बाई फुले अकादमिक शोध एवं सामाजिक विकास संस्थान, जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘मर्यादा पुरुषोत्तम रामः एक वैश्विक आदर्श‘ विषयक अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का शुभारंभ अवध विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. प्रतिभा गोयल, अयोध्या महापौर गिरीशपति त्रिपाठी, विश्व हिंदू परिषद के अंर्तराष्ट्रीय उपाध्यक्ष चम्पत राय और सिद्धपीठ श्री हनुमत निवास के महंथ मिथिलेश नंदिनी शरण महाराज ने मॉ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप-प्रज्ज्वलन के साथ किया।

     कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं श्रीराम तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चम्पत राय ने कहा कि राम किस युग में हुए, सन्त लोग कहेंगे त्रेता। किस कल्प का त्रेता। राम कब हुए? यह विद्वानों का विषय है। वैश्विक क्या है? एक-सारे विश्व के लिए, दूसरा-सर्वकालिक। राम सर्वकालिक हैं। राम के व्यवहार का अध्ययन कीजिए, किसी एक का पालन कीजिए। राम का व्यवहार सर्वकालिक है। दुनियाभर में सुख-शांति के लिए आदर्श है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही कुलपति प्रो0 प्रतिभा गोयल ने कहा कि प्रभु राम की कथा नर से नारायण और नारायण से नर होने की कथा है। प्रभु राम का जीवन मर्यादाओं का पालन करते हुए आदर्श जीवन का उदाहरण है।

    संगोष्ठी के मुख्य वक्ता सिद्धपीठ श्री हनुमत निवास के महंथ मिथिलेश नंदिनी शरण महाराज ने कहा कि अभी विश्व की दृष्टि पर मोतिया चढ़ा हुआ है, विश्व-मैत्री में ही राम के संबंधों का उपयोग अन्य देश करते हैं। राम के चरित्र में आदर्श क्या है? भारतीय संदर्भों में हर दिन पाना ही आदर्श है। हम आदर्श का मतलब नैतिक उच्चता से समझते हैं, जबकि आदर्श संस्कृत का शब्द है, जिसका ठीक-ठीक अर्थ है-दर्पण। किसी विशिष्ट के समक्ष खड़े होकर दर्पण में स्वयं को देख पाना ही आदर्श है। दर्पण श्रंगार नहीं करता बल्कि आपका परीक्षण करता है। राम सार्वभौमिक हैं-देस काल दिसि बिदिसिहु माही। कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाही।।

      कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि अयोध्या महापौर गिरीशपति त्रिपाठी ने कहा कि एक चरित्र के तौर पर भगवान राम के चरित्र जैसी व्याप्ति अन्य किसी चरित्र में नहीं है। विश्व के अन्य चरित्रों की व्याप्ति के पीछे राजनीतिक या अन्य कारण होंगे, जबकि राम की व्याप्ति के पीछे ऐसा कोई कारण नहीं है। 135 देशों  में राम के चरित्रों की पौराणिक-सांस्कृतिक व्याप्ति है। भौगोलिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक अतिक्रमण करते हुए विश्व व्याप्ति है।

      संगोष्ठी के प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता के. एस. साकेत पीजी कॉलेज के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. जनार्दन उपाध्याय ने की। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति एक शाश्वत एवं चिरन्तर संस्कृति है और प्रायः सभी महान विचारक यहाँ की संस्कृति को श्रीराम संस्कृति का प्रतीक मानते हैं। मर्यादा श्री राम के विविध आदर्श एवं मानवीय मूल्यों का वह मूल तत्व है, जिससे उसकी सार्वभौमिक संस्कृति देश-देशांतर में गई है।

कार्यक्रम में आये हुए अतिथियों का स्वागत प्रो. शुचिता पांडेय ने किया। संगोष्ठी के आयोजन समिति में प्रो. शुचिता पांडेय, प्रो. परेश पांडेय, प्रो. वंदना जायसवाल, छवि सैनी, डॉ. कमल किशोर सैनी, डॉ. अंचल मीणा शामिल रही। इस कार्यक्रम में देश भर से लगभग 200 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। संगोष्ठी में प्रो. सारिका दुबे, प्रो. विजय मिश्र, प्रो. मंजूषा मिश्र, प्रो. रीना पाठक, प्रो. सत्य प्रकाश त्रिपाठी, प्रो. सिद्धार्थ पांडेय, प्रो. जयमंगल पांडेय, डॉ.जनमेजय त्रिपाठी सहित बड़ी संख्या में शिक्षक और शोधार्थी मौजूद रहे।

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