@ उदय राज मिश्रा
अम्बेडकर नगर। यह सनातन सँस्कृति की वैज्ञानिकता ही कही जाएगी कि आस्था को उपासना के साथ ही साथ वैज्ञानिकता की कसौटी पर भी कसते हुए प्राचीन मनीषियों ने जिन जीवन और मानवीय मूल्यों का सृजन तथा निर्धारण किया है,आज विज्ञान की अनेकानेक शाखाओं विशेषकर खिचड़ी पर्व के परिप्रेक्ष्य में खगोलविज्ञान शतप्रतिशत भारतीय ज्योतिषशास्त्र व अंतरिक्ष शास्त्र की प्रामाणिकता को स्वयम प्रमाणित करते हुए इसके महत्ता का प्रतिपादन करता है।कहना अनुचित नहीं होगा कि ज्ञान की अजस्र धारा के रूप में प्रवाहित सनातन संस्कृति का प्रमुख पर्व खिचड़ी सूर्य,चन्द्र और धरती की गतियों की सटीक गणना का महोत्सव भी है।
प्राचीन भारतीय ज्योतिष व खगोलशास्त्रियों ने समय की गणना के परिप्रेक्ष्य में सूर्य,चन्द्र और धरती की गतियों को प्रमुख आधार मानते हुए काल विभाजन किया है।वर्ष की गणना करते हुए दो अयनों,12 माह,6 ऋतुओं के साथ ही साथ प्रत्येक माह को भी दो पक्षों क्रमशः शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष और प्रत्येक पक्ष में भी दो दो सप्ताहों की सटीक अवधारणा प्रतिपादित किया है।कालखंड की इन विभिन्न गणनाओं में सूर्य की गति को प्रधान स्वीकार करते हुए जब सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए अपनी दिशा बदलकर थोड़ा उत्तर दिशा की ओर ढलता है तो इसे उत्तरायण कहते हैं।धार्मिक अनुष्ठानों,विवाह,स्नान-दान सहित सभी प्रकार के पुण्य कर्मों के लिए उत्तरायण सर्वोत्तम माना जाता है।इसप्रकार शीत के भयंकर प्रकोप से पीड़ित जड़,चेतन तथा चराचर जगत की समस्त वनस्पतियों तक को नवीन ऊर्जा से अभिप्रेत करने की दिशा में सूर्य का उत्तरायण वैज्ञानिकों के अनुसार भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
खगोलविज्ञान और भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है।अतः प्रतिवर्ष जब सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तो यह दिन मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।जिसे उत्तर भारत विशेषकर यूपी,बिहार,मध्यप्रदेश,हरियाणा,दिल्ली,नेपाल,मॉरीशस,त्रिनिदाद टोबैको,श्रीलंका सहित विभिन्न देशों और प्रदेशों में खिचड़ी महोत्सव के नाम से जबकि गुजरात व राजस्थान में उत्तरायण महोत्सव और पतंग उत्सव,तमिलनाडु में पोंगल,असम में बिहू इत्यादि नामों से सम्पूर्ण भारत में पूरे हर्ष व उल्लास से मनाया जाता है।इसदिन आंध्रप्रदेश में तीन दिनों तक चलने वाला खिचड़ी मेला,महाराष्ट्र में तिल व गजक का उत्सव आयोजित होने के साथ ही साथ प्रयाग,हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में माहभर चलने वाले कुम्भ,अर्धकुंभ या माघ मेले का श्रीगणेश होता है जो शिवरात्रि तक विभिन्न मुख्य स्नानपर्वो के साथ चलते रहते हैं।खिचड़ी के दिन चावल और दाल की खिचड़ी बनाकर खाने और दान देने का भी विधान है।इसीतरह तिल मिश्रित गुड़ की वस्तुएं भी ऊर्जा प्रदान करने औरकि इम्यून पावर बढाने के लिए प्रयोग में लाये जाने का भी रिवाज है।उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और नेपाल के काठमांडू में मकर संक्रांति के दिन लाखों लोग भगवान शंकर का दर्शन पूजन करने के साथ ही साथ खिचड़ी भोग लगाते हैं।
वस्तुतः खिचड़ी अर्थात मकर संक्रांति पर्व का वर्णन न केवल भारतीय पुराणों में ही वर्णित है अपितु तुलसी कृत श्रीरामचरितमानस में भी भारद्वाज व यागवल्क्य ऋषि संवाद के रूप में मकर संक्रांति का सुन्दर वर्णन करते हुए लिखा गया है-
“माघ मकरगत रवि जब होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
एकमास भरि माघ नहाहीं।
सकल मुनिन्ह निज आश्रम जाहीं।।
को कहि सकइ प्रयाग प्रभाउ।
कलुष पुंज कुंजर मृगराउ।।”
इसप्रकार कहा जा सकता है कि होली,दीवाली,दशहरा और अन्यान्य पर्व जहाँ नारायण के विभिन्न अवतारों और तत्सम्बित कृत महान कार्यों के फलत:मनाए जाते हैं तो वहीं खिचड़ी का पर्व भौगोलिक घटनाओं को सत्य साबित करते हुए भारतीय मनीषियों द्वारा आस्था को वैज्ञानिकता से जोड़ते हुए दैनिक जीवन में अंगीकृत करने का एक महान प्रयास है।इतना ही नहीं खगोल शास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर ही जहाँ 21 मार्च को पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा पूरी कर लेती है तो भारतीय मनीषियों ने उक्त 21 मार्च के दूसरे सप्ताह से भारतीय नववर्ष की अवधारणा प्रतिपादित करते हुए चैत्र प्रतिपदा को बासंतिक नवरात्र पर्व को शक्ति और सम्पन्नता का प्रतीक मॉनते हुए महत्ता स्वीकार की है।दुर्भाग्य से जिसदिन भारतीय नववर्ष अंग्रेज़ी तारीखों के मुताबिक प्रारम्भ होता है,उसे अंग्रेजों ने मूर्ख दिवस कहकर भारतीयों को सिर्फ अपमानित किया है,जबकि यह भारतीय ज्ञान-विज्ञान की श्रेष्ठता का दिन है।