अयोध्या। प्रभागीय वनाधिकारी सभागार में आयोजित व्यक्तित्व विकार जागरूकता कार्यशाला में डा आलोक मनदर्शन ने कहा कि ’बॉस इज आलवेज राइट’ एक आम मुहावरा है, पर कुछ लोगों को केवल ’यस बॉस’ सुनने से आनन्दित होने का नशा होता है, जिसे आत्ममुग्धता व्यक्तित्व विकार या नार्सिसिस्टिक पर्सनालिटी डिसऑर्डर-एनपीडी कहा जाता है। हिटलरशाही या तानाशाही आदि उपनामो वाला यह विकार दंभ व श्रेष्ठता दिखाने के लिये क्रूरता की हद तक ले जा सकता है। ऐसे लोगों में नशा,सेक्स व अन्य परपीड़क कृत्य भी दिखतें है। खुद को मानवतावादी या समाजसेवी दिखाने के ढोंग भी ये लोग करते हैं । अपनी बौद्धिक क्षमता, शारीरिक सौष्ठव, सौंदर्य, कला, साहित्य, विशेष कौशल तथा धर्म या पंथ विशेष आदि से भी ऐसे लोग आत्ममोहित दिखतें है जिसकी सहज बानगी सोशल मीडिया रील व पोस्ट के में दिखती है ।
दुष्प्रभाव : आत्ममोहित व्यक्ति के पावर सेंटर या ग्लैमर का दौर खत्म होते ही झूठे प्रसंशको व चापलूसों की फ़ौज गायब हो जाती है। सच्चे मित्र का अभाव तथा स्वजनों से भावनात्मक विघटन के कारण परिवारिक कलह व सामाजिक अलगाव की स्थिति भी ऐसे लोगों को झेलनी पड़ती है । आत्ममुग्ध व्यक्ति की संवेदनहीनता व शोषण से अधीनस्त व परिवारीजन भी स्ट्रेस व एंग्जाइटी का शिकार होते हैं, जिसे नार्सिसिस्टिक एब्यूज डिसऑर्डर कहा जाता है ।
सलाह : आत्ममुग्ध व्यक्ति की अपने रुग्ण व्यवहार के प्रति अंतर्दृष्टि शून्य होती है तथा वह खुद को सही तथा कार्यस्थल व परिजनों को गलत साबित करता है। फैमिली थेरैपी के माध्यम से आत्ममुग्ध व्यक्ति में संवेदना विकसित करने व परिजनों को उसके दुर्व्यवहार से उबरने की मनोयुक्ति सिखायी जाती है। सेल्फ रिवॉर्ड हार्मोन डोपामिन के अधिश्राव को रचनात्मक व मनोरंजक एक्टिविटी के माध्यम से प्रतिस्थापित करने को प्रेरित किया जाता है, जिससे आत्ममुग्ध व्यक्ति में स्वस्थ आत्मसंतुष्टि का संचार हो सके। मूड-स्टेबलाइज़र व एंटी -डिप्रेसेंट दवाएं भी मददगार होती हैं। कार्यशाला की अध्यक्षता प्रभागीय वनाधिकारी प्रणव जैन तथा संयोजन एस डी ओ के एन सुधीर ने किया।