अम्बेडकर नगर। भारतीय अधिनियम 244 से पंजीकृत राष्ट्रभाषा हिन्दी एवं लोक भाषाओं के प्रचार-प्रसार और विकास के लिए समर्पित विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर द्वारा ज़िले के अमृत कुमार को ”विद्या वाचस्पति” मानद सम्मान (मानद डॉक्टरेट समतुल्य) से सम्मानित किया गया है। विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ द्वारा यह सम्मान सुदीर्घ हिन्दी सेवा, लेखन, शिक्षा, साहित्य,सारस्वत साधना, कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियों, शैक्षिक प्रदेशों, शोध कार्य तथा राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा के आधार पर विद्यापीठ की अकादमिक परिषद की अनुशंसा पर दिया जाता है। डॉक्टरेट के समकक्ष की यह उपाधि साहित्य , लेखन,शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर और उल्लेखनीय कार्यों के लिए दी जाती है।यह सम्मान उनके सतत साहित्य सृजन के लिए दिया गया। अमृत कुमार ने विभिन्न सामाजिक और साहित्य के क्षेत्र में कई वर्षों से किए जा रहे कार्य और प्रयास सर्वविदित है । इसके पहले अमृत कुमार को देश प्रदेश में कई पुरस्कार मिल चुके हैं । तथा साहित्य के क्षेत्र में किए जा रहे आयोजन काफी चर्चित है । अमृत कुमार को डॉक्टरेट का मानद सम्मान मिलने पर श्री हरिकेश कनोजिया पूर्व प्रधान ने कहा अमृत कुमार प्रतिभा के धनी हैं, साहित्य और लेखन, शिक्षा तथा सामाजिक क्षेत्र में उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया है वही बस्ती जनपद के पूर्व जिला पंचायत सदस्य प्रतिनिधि चंद्र प्रकाश ने बताया अमृत कुमार संत गाडगे के विचारों को जन जन तक पहुंचाने हेतु सदैव संकल्पित रहे है। बताते चलें की वर्ष 2022 मे अमृत कुमार ने धनघटा विधानसभा से विकाशशील इंसान पार्टी से विधायकी का चुनाव लड़ा था व अभिनय के क्षेत्र मे भी हाथ आजमाया था वर्तमान मे जिले की आलापुर तहसील मे वकालत का कार्य कर रहे है इनकी हिंदी विषय से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी हुई है हिंदी की रुचि व सामाजिक कार्यों के बल पर इन्होने इस उपलब्धि को पाकर जिले का नाम आगे बढ़ाया है ।
इनको बधाई देने वालों में पत्रकार धीरेन्द्र पाण्डेय एडवोकेट उमाशंकर चतुर्वेदी पूर्व केंद्रीय मंत्री द्सई चौधरी जी कनोजिया युवा शक्ति फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजन कन्नौजिया पंकज कन्नौजिया ,विद्यासागर, राकेश चौधरी, आशीष चौधरी ,सिकंदर व सभी पदाधिकारी आदि लोग शामिल रहें ।
हिन्दी व लोक भाषाओं के प्रति देश में भागलपुर स्थित विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ एकमात्र ऐसी संस्था है जो विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि प्रदान करती है। उपाधि मिलने के बाद संबंधित साहित्यकार समाजसेवी या कवि अपने नाम के आगे डॉ लिखने का पात्र हो जाता है। ठीक उसी प्रकार जैसे पीएचडी उपाधि के बाद व्यक्ति डॉ लिखता है।