@ उदय राज मिश्रा
अम्बेडकर नगर। युद्ध,आपदा और राष्ट्रीय संकट के दौरान तथा शांतिकाल में जनसामान्य की सेवा-सुश्रुषा एवम प्राथमिक चिकित्सा करते हुए स्वस्थ और सशक्त राष्ट्र की अवधारणा के मूलमंत्र के पीछे वहाँ के विद्यार्थियों की स्वस्थ मानसिक दशा और कि भविष्योन्मुख प्रशिक्षण महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।यही कारण है कि देश के माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा 6 से ही स्काउट, रेडक्रास, एनसीसी,ए नएसएस व अन्यान्य पाठ्येत्तर क्रियाकलापों को पाठ्यक्रम का महत्त्वपूर्ण अनिवार्य अंग माना गया है।कदाचित विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास की अवधारणा का मूलमंत्र भी इसी में छिपा हुआ है।इसी के मद्देनजर विद्यालयों में प्रतिमाह छात्रनिधि के रूप में विभिन्न मदों में फीस भी वसूली जाती है किंतु 1961 से आजतक रेडक्रास की फीस वसूली के बावजूद प्रशिक्षण सिफर होने से स्वस्थ एवम समृद्ध राष्ट्र की संकल्पना महज कागजी अभिलेख बनती जा रही है,जोकि विचारणीय है।
गौरतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वैश्विक संधि होने के कारण रेडक्रास और स्काउट को पूरे विश्व में प्रचार,प्रसार और तत्सम्बन्धित प्रशिक्षण आयोजन करने के अधिकार प्रदत्त हैं।किंतु भारतीय परिप्रेक्ष्य में जहाँ स्काउटिंग का नई दिल्ली स्थित नेशनल मुख्यालय पूरे भारत में प्रवेश से लेकर राष्ट्रपति अवार्ड और कि जम्बुरियाँ तक आयोजित करता रहता है वहीं रेडक्रास का प्रशिक्षण अभीतक शुरू ही नहीं हो सका है,जबकि इसके भी राजधानियों में मुख्यालय बने हुए और कि जिलों में जिलाधिकारी स्वयम सर्वराकार हैं। कहना अनुचित नहीं होगा कि रेडक्रास प्रशिक्षण के प्रति ऐसी अनदेखी ही विद्यालयों में छात्रनिधियों के बंदरबांट के मुख्य कारण हैं।
उत्तर प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में माध्यमिक स्तर पर विद्यार्थियों को प्राथमिक चिकित्सा,आपदा प्रबंधन इत्यादि प्रशिक्षण शुरू से ही दिए जाने की संकल्पना को आधार मॉनते हुए 1961 से इसे पाठ्येत्तर क्रियाकलाप के रूप में अनिवार्य बनाते हुए बाकायदा 25 पैसे प्रतिछात्र की दर से प्रतिमाह शुल्क वसूलने के का भी विधान किया गया था,जोकि आज भी प्रचलित है।आज प्रति विद्यार्थी 25 पैसे की जगह एक रुपये प्रतिमाह अनिवार्य रूप से शुल्क देता है,जोकि कक्षा 9 से शुरू होकर 12वीं तक जस की तस चलती रहती है।
हैरत की बात तो यह है कि यद्यपि एक रुपये की राशि देखने में भले ही कम दिखती हो किन्तु प्रदेश के 22000 से अधिक राजकीय,माध्यमिक व वित्तविहीन विद्यालयों में यदि औसतन बीस लाख विद्यार्थियों का पंजीकरण माना जाए तो यह राशि बीस लाख रुपये प्रतिमाह और 2.40 करोड़ प्रतिवर्ष होती है।यदि 1961 से इसे बढ़ते हुए क्रम में आगणित किया जाए तो यह राशि कई खरबों के बराबर होगी,जिसके उपभोग के बाबत कोई समुचित जबाव किसी के पास उपलब्ध नहीं हैं।
ज्ञातव्य है कि विद्यालयों में छात्रनिधियों के रूप में प्रतिमाह ली जाने वाली फीस उन्हीं के कल्याण हेतू व्यय होनी चाहिए अन्यथा की स्थिति में उस फीस को वसूलना बन्द होना चाहिए।यहां यह बात दीगर है कि विद्यालयों में वसूली गयी फीस में से दो महीने की फीस शिक्षा विभाग के कार्यालयों के मार्फ़त जिलाधिकारियों के कोष में राहत बचाव हेतु जमा रहता है।शेष 10 महीनों के शुल्क को बच्चों के प्रशिक्षण आदि पर व्यय करने हेतु विद्यालयों जे पास ही छोड़ दिया जाता है,जोकि बंदरबांट होता है।
रेडक्रास प्रशिक्षण के प्रति अधिकारियों व कर्मचारियों का उदासीन होना यूँ ही नहीं बना हुआ है बल्कि ये सब स्वयम रेडक्रास की महत्ता से परिचित नहीं हैं।अतः राज्य मुख्यालयों की रेडक्रास सोसाइटी को आगे आना होगा।