अंबेडकर नगर। ज्ञानमार्गी शाखा के सर्वोच्च कवि महात्मा कबीरदास ने कहा है-
दोष पराया देखिकर,चले हसन्त हसन्त।
आपन याद न आवई,जाको आदि न अंत।।
कदाचित महात्मा कबीर की उक्त पंक्तियां आज सूबे के आला हुक्मरानों के दफ्तरों की खाली पड़ी कुर्सियों को देखकर स्वत्:चरितार्थ हो रही हैं।दिलचस्प बात तो यह है कि कभी भी निर्धारित समय पर अपने दफ्तरों में न पहुंचने वाले अधिकारी ही विद्यालयों में औचक निरीक्षण के नामपर शिक्षकों पर रौब गाँठकर,उन्हें बदनाम कर,अपनी गलतियों को शिक्षकों की बदनामियों की ओट में छिपा दूध के धुले बनते हैं।अतएव ये बिगड़ैल अधिकारी कब सुधरेंगे,कबसे ये नियमित रूप से अपने-अपने कार्यालयों में निर्धारित समय पर मिलना शुरू करेंगें,जिससे कि दूरदराज से आये फरियादियों व जरूरतमंदों को घण्टों इंतज़ार न करना पड़े,यह सोचनीय यक्ष प्रश्न होने के साथ ही साथ बिल्ली के गले मे घण्टी बांधने से कम नहीं है।जो भी हो,गलतियों का प्रत्युत्तर गलतियां नहीं होतीं।अतः व्यापक जनहित में अधिकारियों का नियमित होना अपरिहार्य और प्रासङ्गिक है।
दिलचस्प बात तो यह है कि शिक्षकों,विशेषकर परिषदीय बेसिक शिक्षकों की हाजिरी को लेकर आयेदिन अखबारों से लेकर सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म पटे होते हैं।इतना ही नहीं जिलों के जिलाधिकारीगण व विभागीय अधिकारी भी औचक निरीक्षण अभियान भी समय समय पर चलाते रहते हैं।जिससे हड़कम्प का माहौल बना रहता है और जनमानस में बेसिक शिक्षकों की छवि को आघात पहुँचता है।ध्यातव्य है कि औचक निरीक्षण के नामपर एकप्रकार से शिक्षकों के उत्पीड़न और उनके आर्थिक तथा मानसिक शोषण का सुअवसर कोई भी अधिकारी गंवाना भी नहीं चाहता।जबकि देखा जाय तो नब्बे प्रतिशत अधिकारी प्रायः अपने दफ्तरों में तय समय पर नहीं पहुंचते हैं।यह तो वैसी ही बात हुई जैसे कि कोई कातिल ही मुंसिफ भी बन जाये।लिहाज़ा जागरूक समाज और प्रबुद्धजनों तथा मिडियाजगत का ध्यान सरकारी अधिकारियों की अनुपस्थिति की ओर भी जाना चाहिए,हालांकि यह काम कोई निष्पक्ष व ईमानदार ही कर सकता है,जिनका की आज अकाल सा हो गया है।
वस्तुतः एक शिक्षक होने के कारण मेरा यह कत्तई मन्तव्य नहीं है कि शिक्षकों की उपस्थिति का औचक निरीक्षण नहीं होना चाहिए याकि शिक्षक इच्छानुसार विद्यालय आवें।सत्य तो यह है कि अगर कोई वास्तव में शिक्षक होगा तो कभी भी विलम्ब से नहीं जाना चाहेगा।कभी किसी अपरिहार्य स्थिति को नकारा तो नहीं जा सकता किन्तु आज भी 95 प्रतिशत से अधिक शिक्षक,विशेषकर बेसिक के शिक्षक समयानुसार विद्यालयों में उपस्थित रहते हैं।किंतु बदनामियों का जो दाग बेसिक पर सिर्फ पाँच प्रतिशत के चलते लगता है,उसके जिम्मेदार भी स्वयम अधिकारी ही हैं।खण्ड शिक्षाधिकारियों से लेकर बेसिक शिक्षाधिकारियों के दफ्तर में सैकड़ो शिक्षक सम्बद्ध रहते हैं।जिससे विद्यालयों में शिक्षण कार्य प्रभावित होता है।अतएव बेसिक विद्यालयों में शतप्रतिशत शिक्षकों की उपस्थिति हेतु विभिन्न कार्यालयों में सम्बद्ध सभी शिक्षकों का कार्यमुक्त होना भी नितांत आवश्यक है अन्यथा इन शिक्षकों के चहेते कभी भी समय से विद्यालय नहीं आयेंगें और पूरा महकमा तथा शिक्षक समाज बदनाम होता रहेगा।अस्तु समयानुसार उपस्थिति हेतु बायोमेट्रिक हाजिरी कुछ हदतक अवश्य कारगर होगी किन्तु इसकी भी काट स्वयम अधिकारीवर्ग ही ढूंढकर शिक्षकों को बताएगा अन्यथा मलाई की आपूति बन्द होने से कार्यालयों की रौनक फीकी पड़ने की पुरजोर संभावना बनी रहेगी।
बेसिक की तुलना में माध्यमिक विद्यालयों में सतत अनुपस्थिति होना और कि अवकाश लेखे में छुट्टियों का दर्ज न होना काफी मुश्किल है क्योंकि यदि माध्यमिक विद्यालयों में ऐसी छूट किसी एक शिक्षक को मिली तो तत्काल सभी लोग या तो वैसा ही करना चाहेंगे या फिर जोरदार विरोध हो सकता है।हाँ, कुछ शिक्षक लेटलतीफी के आदती होते हैं किंतु प्रधानाचार्यों द्वारा उन्हें नित्यप्रति उलाहना भी सुननी पड़ती है,जलालत भोगना पड़ता है।इसके अतिरिक्त माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों को क्रमशः 5 व 6 वादन पढ़ाने के कारण कुल 8 वादनों में कोई कक्षा शिक्षण से अछूती भी नहीं रहती।ध्यातव्य है कि टीजीटी शिक्षक प्रतिदिन 6 वादन,प्रवक्ता 5 और प्रधानाचार्यगण 2 वादन अनिवार्यतः कक्षा शिक्षण करते हैं।कुछ कुछ विद्यालयों में शिक्षकों के पद रिक्त होने के चलते इससे अधिक वादन भी पढ़ाने पड़ते हैं।
विद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थिति के सापेक्ष यदि जिला और विकास खण्ड स्तरीय अधिकारियों के समय पर कार्यालयों में उपस्थित होने का सर्वेक्षण किया जाय तो शायद ही ऐसा कोई अधिकारी होगा तो समय का पाबंद और वसूल का पक्का हो,अन्यथा सब लोग अपनी मर्जी के मालिक होते हैं।इतना ही नहीं दोपहर में मध्यावकाश के दौरान कार्यालयों की बजाय अपने आवासों ओर जाकर भोजन और शयन में भी काफी वक्त जाया करते हैं।जिससे दूर दराज क्षेत्रों से आये फरियादियों व जरूरतमंदों से या तो उनकी मुलाकात नहीं होती याफिर लाल फीताशाही उन्हें बलि का बकरा बनाकर हलाल करती है।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या मीडिया को,समाज को,जनप्रतिनिधियों को और जागरूक प्रबुद्धों को अधिकारियों की यह कारस्तानी दिखती नहीं है या फिर सभी लोग निजी स्वार्थों के वशीभूत होकर सबकुछ जानकर भी खामोश रहते हैं।यही कारण है कि शिक्षकों को लगातार निशाने पर रखने वाला समाज और मीडिया अधिकारियों की कारस्तानियों को जानकर भी अनजान बना रहता है।कहना गलत नहीं होगा कि समाज और मीडिया स्वयम को शिक्षकों से अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली समझने की भूल कर बैठा है जबकि हकीकत इससे उलट है।मीडिया को आम जनता की आवाज बनकर शिक्षकों सहित सभी अधिकारियों व कर्मचारियों की कामचोरी,गैरहाजिरी,घूसखोरी,उत्पीड़न इत्यादि की घटनाओं को प्रचारित व प्रसारित करना चाहिए।समाज को भी समझना चाहिए कि यदि अधिकारी सुधर जाएं तो हर शिक्षक व प्रत्येक कर्मचारी भी अपनेआप सुधर जाएगा अन्यथा शिक्षकों को बदनाम करते ये अधिकारी अपनी नाकामियों व अनुपस्थितियों को उनके पीछे छिपाते रहेंगें।जिससे समस्या जस की तस बनी रहेगी और नासूर बढ़ता जाएगा।मानव सम्पदा पोर्टल पर अवकाश लेखे का दर्ज होना कोई बड़ी बात नहीं है।सत्य तो यह है कि शिक्षकों के चयन,प्रोन्नत आदि प्रकरणों को लंबित रख स्वयम अधिकारी वर्ग ही शिक्षकों को उनके कार्यालयों की गणेश परिक्रमा और चढ़ावा चढ़ाने को विवश है।जिसपर अविलंब विराम लगाते हुए अकारण कार्यस्थलों से गायब रहने वाले सभी लोगों के विरुद्ध गहन पड़ताल और उनपर कार्यवाही आज समय की मांग और सिटीजन चार्टर की प्राथमिक प्रस्तावना है।