Saturday, November 23, 2024
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संतों का श्राप भी प्रभु कृपा से वरदान बन जाता है-कथा व्यास

Ayodhya Samachar

बसखारी अंबेडकर नगर।  संतों का श्राप भी कभी-कभी वरदान का कार्य करता है। तत समय मनुष्य को उस श्राप में अपना अहित दिखाई देने लगता है। लेकिन कभी-कभी उसमें मानव का बहुत बड़ा हित छुपा रहता है। उक्त बातें टांडा तहसील क्षेत्र के भटपुरवा गांव में चल रही भागवत कथा के पंचम दिन गोवर्धन पर्वत की कथा के संबंध में बताते हुए कथा व्यास आचार्य अनूप बाजपाई जी महाराज ने कही।उन्होंने बताया त्रेता युग में नल और नील एक संत के तपस्या में बाधा डाल रहे थे। उनके तप करने के समय उनका सामान उठा कर के नदी में फेंक देते  थे।बार-बार ऐसा करने पर संत नाराज होकर उनको श्राप दे दिये कि तुम्हारे द्वारा फेंकी गई कोई भी वस्तु जल में नहीं डूबेगी। आगे चलकर जब भगवान राम को रावण विजय के लिए लंका में जाना पड़ा।उस समय समुद्र पर पुल बनाने के लिए नल और नील के द्वारा ही पत्थर पर राम नाम लिखकर के समुद्र में तैरया गया और पुल का निर्माण हुआ।उसी समय राम भक्त हनुमान ने प्रभु राम से निवेदन किया यदि आपका आदेश हो तो एक ही पत्थर बड़ा डाल कर के समुद्र पर रास्ता बना दिया जाए। श्री राम चन्द्र जी ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार किया। हनुमान जी पत्थर लाकर जैसे ही मथुरा पहुंचे,तब तक नल और नील बंदर भालूओं के साथ मिलकर पुल का निर्माण कर चुके थे। इस कारण हनुमान जी ने पत्थर को मथुरा में ही स्थापित कर समुंद्र की तरफ रवाना होने लगे। पत्थर ने विनती करते हुए  उसने कहा कि मेरे भाग्य में भगवान के चरणों की धूल पाना नहीं है। मेरे साथ इतना अन्याय मत कीजिए।हनुमान जी पुनः भगवान से संपर्क साधे तो भगवान ने आश्वासन दिया।उनसे कह दो हमारा इंतजार करें ।आने वाले समय में हम उसका उद्धार जरूर करेंगे।उसी वचन के चलते द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को सर पर उठाकर गोवर्धन का मान बढ़ाया था।और उसी समय से गोवर्धन पूज्यनीय हो गया। कथा के दौरान   गोवर्धन और कान्हा के मटकी फोड़ने की झांकी निकाली गई ।जिसकी पूजा और परिक्रमा कथा में मौजूद श्रद्धालुओं ने कर  खूब आनंद लिया।कार्यक्रम में प्रमुख रूप से राजेश कुमार पांडे ,वागीश मिश्रा, देवेंद्र कुमार तिवारी, विवेकानंद उपाध्याय, सभापति त्रिपाठी सहित सैकड़ों मौजूद रहे।

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