अंबेडकर नगर। सन्यास उपनिषद में एक श्लोक वर्णित है-
आत्मनेस्तु नमस्तुभ्यमविच्छिन्न चिदात्मने।
तुभ्यं मैह्यम अनन्ताय तुभ्यं मैह्यम चिदात्मने।
नमस्तुभ्यम परेशाय नमो मैह्यम शिवाय च।।
मुझ अविच्छिन्न आत्मा को नमस्कार है।तूँ और मैं अनंत हैं,मैं और तूँ चिदात्मा हैं;दोनों को नमस्कार है।मुझ परमेश्वर और मुझ शिवरूप को नमस्कार है।
अर्थ पढ़कर लगता है कि कैसा अटपटा श्लोक है,सूत्र है।मुझको ही नमस्कार है।यह कोई बात हुई।यह तो बड़े अहंकार की घोषणा जान पड़ती है।लेकिन यदि ध्यान से मनन करते हुए अर्थ समझें तो अनुभूत होगा कि ये बड़ा प्यारा सूत्र है।क्योंकि कौन नमस्कार करे और किसको नमस्कार करे-यहां एक ही है।वही नमस्कार करने वाला और उसी को नमस्कार किया जाना है।वही एक दो में बंटकर खड़ा है।इसीलिए तो इस देश ने नमस्कार का एक अद्भुत ढंग निकाला।दुनियां में वैसा कहीं नहीं है।इस देश ने कुछ दान किया है,मनुष्य की चेतना को,अपूर्व।
यह देश(भारत)अकेला ऐसा देश है जहां जब दो व्यक्ति नमस्कार करते हैं तो दो काम करते हैं।एक तो दोनों हाथ जोड़ते हैं।दो हाथ जोड़ने का मतलब होता है:दो नहीं एक।दो हाथ दुइ अर्थात द्वेत के प्रतीक हैं।उन दोनों को जोड़ लेते हैं कि दो नहीं,एक ही हैं।उस एक का स्मरण दिलाने के लिए ही दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार करते हैं।और दोनों हाथ जोड़कर जो भी शब्द बोलते हैं,वह परमात्मा का स्मरण होता है।कहते हैं-राम-राम,पालागी,प्रणाम, जयराम या कुछ भी।लेकिन वह परमात्मा का नाम होता है।दो को जोड़ा कि परमात्मा का नाम उठा।दुइ गयी कि परमात्मा आये।दो हाथ जुड़े और एक हुए कि फिर बचा क्या;है राम।
दुनियां में नमस्कारके बहुत तरीके हैं।कहीं हाथ मिलाकर,कहीं नाक से नाक रगड़कर,कहीं जीभ से जीभ मिलाकर नमस्कार करते हैं।कहीं कहते हैं-गुड मॉर्निंग या नून याकि इवेनिंग और गुड नाईट।लेकिन यह देश अकेला है जो दूसरे को छूता तक नहीं,सिर्फ अपने दोनों हाथों को जोड़ देता है।ऐसे एकत्व की उद्घोषणा करता है और फिर भगवान का स्मरण करता है।और जय भी बोलता है तो राम,श्याम,माता आदि की।क्या सुबह की बात करनी।क्या सांझ की बात करनी।सुबहें आती हैं,जाती हैं,जो सदा टिका है वह राम है।उसी में सुबह होती है,उसी में सांझ होती है,उसकी बात कर ली तो सबकी बात कर ली।उस एक को मांग लिया तो सब मांग लिया।
यही कारण है कि द्वेत में अद्वेत को साकार करता अभिवादन और करवन्दना पूरे विश्व में अद्वितीय है।
रामचरित मानस में भी करबद्ध प्रणाम/नमस्कार का सुंदर वर्णन गोस्वामी जी ने किया है-
सियाराम मय सब जग जानी।
करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी।।
अंतराष्ट्रीय स्तर पर स्काउटिंग/गाइडिंग के संस्थापक लार्ड वेडेन पॉवेल ने भी ब्रिटिश सेना का भारत में अंग रहते हुए भारतीय वाङ्गमय के इस लालित्य और एकत्व के प्रतीक करबद्ध प्रणाम को स्काउटिंग में भी आर्यन सैल्यूट के रूप में मान्यता दी है।कहना गलत नहीं होगा कि करबद्ध प्रणाम हाथ की दसों अंगुलियों के रूप में दसों दिशाओं और दोनों हथेलियां द्वेत का प्रतीक होकर भी जब आपस में जुड़कर एक होती हैं तो अद्वेत का प्राकट्य होता है और इसी के साथ निकलता है उसका नाम।जिसे लोग अपनी अपनी मान्यताओं के अनुसार भिन्न भिन्न नामों से पुकारते हैं।यही है करबद्ध प्रणाम और समष्टि में व्यष्टि की संकल्पना।